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________________ ANEKANTA - ISSN 0974-8768 मेवाड़ के जिनालयों में सामाजिक पक्ष -डॉ. मीना बया, उदयपुर जिनालयों में प्रारम्भ से ही देव रूपांकनों के साथ-साथ सामाजिक जीवन से सम्बन्धित विषयांकन होता रहा है। किसी भी सम्प्रदाय के देव प्रासादों का निर्माण करवाने या करने वाला मानव ही है जोकि एक सामाजिक प्राणी है। मन्दिर के निर्माणोपरान्त मानव समाज ही वहाँ उपासना-अर्चना हेतु आता है। इस तरह मन्दिर प्रारम्भ से ही मानव समाज का केन्द्र बिन्दु रहा है। तो देव प्रासादों का सामाजिक जीवन से बचा रहना कैसे सम्भव हो सकता है? देवालयों में सामाजिक विषयांकनों के पीछे भी कुछ उद्देश्य रहे हैं- जैसे युग विशेष की सभ्यता, संस्कृति, रीति-रिवाजों, परम्पराओं, वस्तुओं आदि की जानकारी आगामी युग को प्रदान करना। ये देवालय मात्र देवोपासना के केन्द्र ही नहीं, वरन् शिक्षा के केन्द्र भी रहे हैं। मेवाड़ के आहड, नागदा, देलवाड़ा (देवकुलपाटक) व श्री ऋषभदेव (केशरियाजी) के जिनालयों में हुए सामाजिक विषयांकन के निम्न रूपांकन प्रमुख हैं- धार्मिक पूजा, दीक्षा से सम्बन्धित दृश्य, राजकीय परिदृश्य, संगीत, आमोद-प्रमोद आदि के दृश्य और मिथुनाकृतियाँ। धार्मिक पूजा, दीक्षा से सम्बन्धित दृश्य धर्म-दर्शन का समाज में प्रमुख स्थान रहा है। धर्म समाज में ही फूलता-फलता है, क्योंकि उसका पोषण एवं संवर्धन समाज द्वारा ही होता है। स्वाभाविक है कि धर्म स्थल समाज से अलग नहीं हो सकते। जैन धर्म की प्रमुख विशेषता है कि यह धर्म चतुर्विध संघ के अधीन अपने कार्य करता है। चतुर्विध संघ में साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका आदि सम्मिलित होते हैं। जिनालयों में चतुर्विध की गतिविधियाँ ही शिल्पांकन में विषय बनीं। जैसे- साधुओं के प्रवचन के दृश्य, पूजा महोत्सवों के दृश्य, गीत-संगीत, शोभायात्रा आदि के दृश्य यथास्थान अंकित किये गये हैं। कहीं-कहीं राजपरिवार की घटनाओं का अंकन है। ये सुन्दर उदाहरण आहड़, नागदा, देलवाड़ा व ऋषभदेव आदि जिनालयों में वितानों, अधिष्ठानों, मण्डोवरों आदि स्थानों पर देखे जा सकते हैं।
SR No.538072
Book TitleAnekant 2019 Book 72 Ank 07 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2019
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size2 MB
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