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________________ ANEKANTA - ISSN 0974-8768 जिनमन्दिर दर्शन = एक माह = 30 उपवास जिनमन्दिर पहुंचना = छह माह = 180 उपवास मंदिरद्वार पर पहुंचना = एक वर्ष = 360 उपवास प्रदक्षिणा करने पर = सौ वर्ष = 36,000 उपवास नेत्रों से बिम्बदर्शन = हजार वर्ष = 360,000 उपवास स्तुति करने पर = अनुपम उत्तम फल इसी भाव को विमलसूरि (चतुर्थ शती ईसवी) ने अपने पउमचरिय में भी व्यक्त किया था मणसा होइ चउत्थं, छट्ठफलं उठ्ठियस्य संभवइ। गमणस्स उ आरंभे, हवइ फलं अट्ठमोवासे॥ गमणे दसमं तु भवे, तह चेव दुवालसं गए किंचि। मज्झे पक्खोवासं, मासोवासं तु दिह्रण॥ संपत्तो जिणभवणं, लहई छम्मासियं फलं पुरिसो। संवच्छरियं तु फलं, अणंतपुण्णं जिणथुईए॥ (पउमचरिय, उद्देश 32, गाथा 89-91) उक्त भाव को हिन्दी दोहा में इस प्रकार कहा गया हैजब चिन्तो तब सहस फल, लक्खा गमन करेय। कोड़ाकोड़ी अनन्तफल, जब जिनवर दरसेय॥ यह फल तभी प्राप्त होता है जब दर्शनार्थी मौनपूर्वक ईर्या समिति से जीवरक्षा करता हुआ देवदर्शन के लिए गमन करता है। पद्मनन्दिपञ्चविंशतिका में आचार्य पद्मनन्दी ने यद्यपि यशस्तिलक चम्पूकार श्रीसोमदेवसूरि द्वारा वर्णित षडावश्यकों को यथावत् स्वीकार किया है, तथापि उन्होंने देवपूजा के स्थान पर देवदर्शन एवं देवस्तवन को भी स्वीकार कर लिया है। वे लिखते हैं प्रपश्यन्ति जिनं भक्त्या पूजयन्ति स्तुवन्ति ये। ते च दृश्याश्च पूज्याश्च स्तुत्याश्च भुवनत्रये॥ ये जिनेन्द्रं न पश्यन्ति पूजयन्ति स्तुवन्ति न। निष्फलं जीवितं तेषां तेषां धिक् च गृहाश्रमम्।।410-411 अर्थात् जो भव्य जिनेन्द्र भगवान् का भक्तिपूर्वक न तो दर्शन करते
SR No.538072
Book TitleAnekant 2019 Book 72 Ank 07 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2019
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size2 MB
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