SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ANEKANTA - ISSN 0974-8768 54 400 क्र. अवसर उच्छ्वास 1. दैवसिक प्रतिक्रमण 108 2. श्रात्रिक प्रतिक्रमण 3. पाक्षिक प्रातिक्रमण 300 4. चातुर्मासिक प्रतिक्रमण 5. वार्षिक प्रतिक्रमण 6. हिंसादिरूप अतिचार में 7. भिक्षा चर्या जाने पर 8. निर्वाण भूमि जाने पर 9. अर्हत् शय्या 10. अर्हत् निषद्यका 11. श्रमण शय्या 12. लघु व दीर्घ शंका 13. ग्रन्थ के आरंभ में 14. ग्रन्थ की समाप्ति पर 15. वन्दना काल में 16. अशुभ परिणाम 17. कायोत्सर्ग के श्वास भूल जाने पर 8 अथवा अधिक कायोत्सर्ग का प्रयोजन अथवा फल कायोत्सर्ग का फल बताते हुये आचार्य कहते हैं कि काओसग्गं इरियावहादिचारस्स मोक्खमग्गम्मि। बोसट्ठचत्तदेहा करंति दुक्खक्खयट्ठाए॥ काओसग्गम्हि कदे जह भिज्जदि अंगुवेगसंधीओ। तह भिज्जदि कम्मरयं काउसग्गस्स करणेण। अर्थात् साधक अथवा मुनि गमनकाल में अबुद्धि पूर्वक हुये ईर्यापथ के अतिचार को सोधने के लिए तथा पूर्वोक्त अवसरों पर संभावित दोषों के निवारण के लिए मोक्षमार्ग में स्थित शरीर में ममत्व को छोड़ने वाले मुनि दु:ख के नाश करने के लिए कायोत्सर्ग करते हैं। कायोत्सर्ग करने पर यथा
SR No.538072
Book TitleAnekant 2019 Book 72 Ank 07 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2019
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy