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________________ 32 ANEKANTA ISSN 0974-8768 रूप से संलग्न होकर चित्त की निष्प्रकम्प अवस्था में ही ध्यान होता है। आलंबन में मृदु भावना से संलग्न, अव्यक्त और अनवस्थित चित्त की अवस्था को ध्यान नहीं कहा जा सकता है। " उच्छ्रित- निषण्ण अथवा उत्थित निविष्ट जो साधक कायोत्सर्ग पूर्वक खड़ा होकर आर्त्त और रौद्र ये दो ध्यान करता है उसके उच्छ्रित- निषण्ण कायोत्सर्ग होता है । " निषण्ण- उच्छ्रित अथवा उपविष्टोत्थित जो साधक बैठकर धर्मध्यान अथवा शुक्लध्यान में संलग्न होता है, उसके निषण्ण-उच्छ्रित अथवा उपविष्टोत्थित कायोत्सर्ग होता है । " निषण्ण जो साधक आर्त्त, रौद्र, धर्म अथवा शुक्ल किसी भी ध्यान में संलग्न नहीं होता, उसके निषण्ण कायोत्सर्ग होता है। 12 निषन्न- निषन्न अथवा उपविष्टोपविष्ट जो साधक बैठकर आर्त्त और रौद्र ध्यान में संलग्न होता है, उसके निषन्न-निषन्न अथवा उपविष्टोपविष्ट कायोत्सर्ग होता है । 3 इस प्रकार यह निश्चित होता है कि कायोत्सर्ग बैठे-बैठे अथवा खड़े-खड़े दोनों अवस्थाओं में संभव है। कायोत्सर्ग को मानसिक अथवा कायिक इन दो भेदों से भी समझा जा सकता है। मानसिक और कायिक कायोत्सर्ग की विधि मूलाचार में आचार्य वट्टकेर लिखते हैं किबोसरिदबाहुजुगलो चदुरंगुल अंतरेण समपादो । सव्वंगचलणरहिओ काउसग्गो विसुद्ध दु|| जे केई उवसग्गा देव माणुसतिरिक्खचेदणिया। ते सव्वे अधिआसे काओसग्गे ठिदो संते ॥ काओसग्गम्मि ठिदो चिंचिदु इरियावधस्स अतिचारं । तं सव्वं समणित्ता धम्मं सुक्कं च चिंतेज्जो ॥१४ अर्थात् कायोत्सर्ग में संलग्न साधक कैसे एक स्थान पर खड़े होकर दोनों बाहुओं को लंबा करके पैरों के मध्य चार अंगुल का अंतर रखकर समपाद अवस्था में स्थिर होकर हाथ आदि का हलन चलन नहीं करता,
SR No.538072
Book TitleAnekant 2019 Book 72 Ank 07 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2019
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size2 MB
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