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________________ ANEKANTA - ISSN 0974-8768 ज्ञानी के द्वारा निर्जरा के स्वरूप गुण-दोष भेद आदि का चिंतन किया जाता है। आचार्य अकलंकदेव का कहना है कि 'वेदना के विपाक (फल देकर कर्मों के झड़ जाने को) निर्जरा कहते हैं। वह निर्जरा दो प्रकार की हैअबुद्धिपूर्वा और कुशलमूला। नरकादि गतियों में कर्मफल विपाक से होने वाली अबुद्धिपूर्वा निर्जरा है, वह अकुशलानुबन्ध है, क्योंकि वह पाप बन्ध का कारण है। परीषहजय और तप आदि से होने वाली निर्जरा कुशलमूला है अर्थात् परीषह सहन करने पर कुशलमूला निर्जरा होती है, वह शुभकर्म बन्ध वाली होती है और बन्ध रहित भी होती है। इस प्रकार निर्जरा के गुण-दोषों का चिन्तन करना निर्जरा भावना है। निर्जरा अनुप्रेक्षा का चिन्तन करने वाले प्राणी की कर्म निर्जरा के लिए ही प्रवृत्ति होती है। उसका चिंतन चलता है कि आबाधाकाल पूर्ण होने पर बद्धकर्म उदयावली में आकर निषेक रचना के अनुसार खिरने लगते हैं, उनका यह खिरना सविपाक निर्जरा कहलाती है। सिद्धों के अनन्तवें भाग और अभव्य राशि के अनन्त गुणित कर्म परमाणु प्रत्येक समय बन्ध को प्राप्त होते हैं और उतने ही कर्म परमाणु निर्जीर्ण हो जाते हैं। यह क्रम अनादिकाल से चला आ रहा है। सम्यग्दर्शन तथा तपश्चरण आदि का निमित्त मिलने पर उन कर्म परमाणुओं को जोकि अभी उदयावली में नहीं आये थे, उन्हें उदयावली में लाकर खिरा देना अविपाक निर्जरा है। सकाम और अकाम इन दो नामों से भी निर्जरा का वर्णन है। स्वतः ही विपाक होने पर कर्मस्थिति समाप्त होने पर कर्मों का खिरना या नाश होना अकाम निर्जरा है। ज्ञानपूर्वक तप आदि क्रियाओं के द्वारा कर्मों का नाश करना सकाम निर्जरा है। अकाम का अर्थ कामना रहित है। सकाम का अर्थ कामना युक्त है। अकाम निर्जरा में परवश होकर क्षुधा तृषा आदि अनेक प्रकार के कष्टों को सहन करने से यह निर्जरा होती है। इच्छा के विरुद्ध जो भी भूख-प्यास आदि सहन किया जाता है। कायक्लेश मात्र से कर्मक्षय करने वाले अन्यमतावलम्बी अकाम निर्जरा ही करते हैं। जिनमत के अनुयायी भी अकाम निर्जरा पूर्वक शरीर को छोड़कर व्यन्तर आदि बनते हैं। अकाम निर्जरा से कभी मोक्ष फल की प्राप्ति नहीं होती। अकाम निर्जरा जीव अज्ञानी अवस्था में करता है। अत: वह करोड़ों वर्षों
SR No.538072
Book TitleAnekant 2019 Book 72 Ank 07 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2019
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size2 MB
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