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ANEKANTA ISSN 0974-8768
के साक्षी हैं कि उनके कर्म भिन्न-भिन्न हैं और उनका फल भी भिन्न-भिन्न है। यदि ऐसा नहीं होता तो सभी की आकृति और सभी की प्रकृति एक जैसी होनी चाहिए, किन्तु यथार्थ में ऐसा नहीं है। अत: हमें वास्तविकता से परिचित होना चाहिये । वास्तविकता से कभी मुँह नहीं मोड़ना चाहिये।
शास्त्रों में तीन कालों की चर्चा है- अतीत, वर्तमान और भविष्य । ये तीनों काल एक-दूसरे से परस्पर जुड़े हुये हैं। वर्तमान काल मध्य दीपक का कार्य करता है। यह अतीत से जुड़ा है और भविष्य से भी। जैनदर्शन पुनर्जन्म को स्वीकार करता है। यह पुनर्जन्म की मान्यता जीव को तीनों कालों से जोड़ती है। आचार्य कुन्दकुन्द ने पञ्चास्तिकाय नामक ग्रन्थ में लिखा है
पाणेहिं चदुहिं जीवदि जीविस्सदि जो हु जीविदो पुव्वं । सो जीवो पाणा पुण बलमिंदियमाउ उस्सासा ॥'
अर्थात् जो वर्तमान काल में चार प्राणों से जीता है, भविष्यत्काल में जियेगा और इससे पूर्व जीता था वह निश्चय से जीव है। उसके बल, इन्द्रिय, आयु और श्वासोच्छ्वास- ये कम से कम चार प्राण अवश्य होते हैं। इसी प्रकार सिद्धान्तिदेव मुनि नेमिचन्द्र ने भी अपने द्रव्यसंग्रह नामक ग्रन्थ में लिखा है कि
तिक्काले चदुपाणा इंदियबलमाउ आणपाणो य । ववहारा सो जीवो णिच्छयणयदो दु चेदणा जस्स ॥
इस प्रकार जीव मात्र का तीनों कालों से सम्बन्ध है। गोम्मटसार (जीवकाण्ड) में जीव के दश प्राणों का उल्लेख किया गया है- स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र- ये पांच इन्द्रियाँ, मनोबल, वचनबल और कायबल- ये तीन बल और आयु एवं श्वासोच्छ्वास- ये दश प्राण हैं। एकेन्द्रिय जीव में चार प्राण पाये जाते हैं- स्पर्शन इन्द्रिय, काय बल, आयु और श्वासोच्छ्वास। द्वीन्द्रिय जीव में उपर्युक्त के अतिरिक्त रसना इन्द्रिय और वचन बल- ये दो प्राण और होते हैं। त्रीन्द्रिय जीव में उपर्युक्त के अतिरिक्त घ्राण इन्द्रिय होती है, जिससे त्रीन्द्रिय जीव में सात प्राण होते हैं। चतुरिन्द्रिय जीव में चक्षु इन्द्रिय भी होती है। अतः चतुरिन्द्रिय जीव के