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________________ अनेकान्त 72/3, जुलाई-सितम्बर, 2019 हैं, उन्होंने प्राय: भूखे मरने का नाम उपवास समझ रखा है। इसीसे वे कुछ भी धर्म-कर्म न कर उपवास का दिन योंही आकुलता और कष्ट से व्यतीत करते हैं- गर्मी के मारे कई-कई बार नहाते हैं, मुख धोते हैं, मुख पर पानी के छींटे देते हैं, ठण्डे पानी में कपड़ा भिगोकर छाती आदि पर रखते हैं; कोई-कोई प्यास कम करने के लिए कुल्ला तक भी कर लेते हैं और किसी प्रकार से यह दिन पूरा हो जावे तथा विशेष भूख-प्यास की बाधा मालूम न होवे इस अभिप्राय से खूब सोते हैं, चौंसर - गंजिफा आदि खेल खेलते हैं अथवा कभी-कभी का पड़ा गिरा कोई ऐसा गृहस्थी का धंधा या आरम्भ का काम ले बैठते हैं, जिसमें लगकर दिन जाता हुआ मालूम न पड़े। गरज ज्यों-त्यों करके अनादर के साथ उपवास के दिन को पूरा कर देते हैं, न विषय कषाय छोड़ते हैं और न कोई खास धर्माचरण ही करते हैं। पर इतना जरूर है कि भोजन बिल्कुल नहीं करते, भोजन न करने को ही उपवास या व्रत समझते हैं और इसी से धर्मलाभ होना मानते हैं! सोचने की बात है कि यदि भूखे मरने का नाम ही उपवास या व्रत हो तो भारतवर्ष में हजारों मनुष्य ऐसे हैं, जिनको कई-कई दिन तक भोजन नहीं मिलता है, वे सब ही व्रती और धर्मात्मा ठहरें; परन्तु ऐसा नहीं है। हमारे आचार्यों ने उपवास का लक्षण इस प्रकार वर्णन किया हैकषाय-विषयाहार - त्यागो यत्र विधीयते । 9 उपवासः स विज्ञेयः शेषं लंघनकं विदुः ॥ अर्थात् जिसमें कषाय, विषय और आहार इन तीनों का त्याग किया जाता है, उसको उपवास समझना चाहिए। शेष जिसमें कषाय और विषय का त्याग न होकर केवल आहार का ही त्याग किया जावे, उसको लंघन (भूखा मरना) कहते हैं। श्री अमितगति आचार्य इस विषय में ऐसा लिखते हैंत्यक्त-भोगोपभोगस्य, सर्वारम्भ- विमोचिनः । चतुर्विधाशनत्याग उपवासो मतो जिनैः ॥ अर्थात् जिसने इन्द्रियों के विषयभोग और उपभोग को त्याग दिया है और जो समस्त प्रकार के आरम्भ से रहित है, उसी के जिनेन्द्रदेव ने चार प्रकार के आहार - त्याग को उपवास कहा है। अतः इन्द्रियों के विषयभोग
SR No.538072
Book TitleAnekant 2019 Book 72 Ank 07 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2019
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size2 MB
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