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________________ अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016 मायाचार त्यागना चाहिए। 2. मायाचारी किसी तथ्य को अधिक समय तक छिपाकर नहीं रख सकता। ऐसा विचार कर मायाचार का त्याग करना। 3. मायाचार से किसी तथ्य को छिपाने के लिए झूठ का सहारा लेना पड़ता है और एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं इतने पर भी वह इसे छिपाने में असमर्थ रहता है। 4. मायाचारी के हृदय में सत्य एवं त्याग धर्म को प्रवेश नहीं होता क्योंकि मायाचार झूठ अथवा छल कपट के बिना नहीं होता है। जैसे- रत्नकरण्ड श्रावकाचार में कहा है कि जिस तरह टेड़े म्यान में सीधी तलवार प्रवेश नहीं कर सकती। उसी प्रकार जिनेन्द्र का सरल (सीधा) धर्म मायाचारी के वक्र (हृदय) में प्रवेश नहीं कर सकता है। 5. मायाचार करने से नीच गति एवं स्त्री पर्याय की प्राप्ति होती है। ऐसे शास्त्र वचन भी याद रखना चाहिए। 6. हमें अपने उपदेशों में मायाचार से होने वाली हानियाँ से जनता को अवगत करना चाहिए ताकि लोग मायाचार से मुक्त होकर मानवीय मूल्यों को बढ़ा सकें। 7. किसी तथ्य को छिपाकर उपदेश नहीं करना चाहिए क्योंकि उसका भेद खुलने पर मानवीय मूल्यों का ह्रास होता है। 8. निजी स्वार्थ के लिए कपट नहीं करना चाहिए। 9. मायाचार पूर्वक जाति, कुल आदि को नहीं छिपाना चाहिए क्योंकि उससे मानवीय मूल्य खत्म होता है। लोभ कषाय - धन आदि की तीव्र आकांक्षा या गृद्धि लोभ है। यह भी अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन के भेद से चार प्रकार का है इनकी उपमा क्रमशः किरमजी का दाग, पहिये की कीचड, काजल और हल्दी के रंग से दी गई है इसका प्रभाव उत्तरोत्तर मन्द होता जाता है। इसका फल भी क्रमशः नरक, तिर्यंच, मनुष्य तथा देवगति की प्राप्ति होती है। (गो. जीवकाण्ड गाथा-287) आचार्य शुभचन्द्र ज्ञानार्णव के उन्नीसवे सर्ग में कहते हैं कि
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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