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________________ अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016 मानवीयता प्रकट करता है। 1. गरीब - भूखे को अन्न दान देना, ठंड के दिनों में आवास देना, आदि मानवीय मूल्य है। 2. मंदिर, धर्मशाला, निःशुल्क विद्यालय खुलवाना आदि मानवीय मूल्य। 3. पशुओं के लिए सुरक्षित स्थान देना, पक्षियों के लिए जगह-2 पानी, दाना देना आदि। माया कषाय गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा 286 में माया का अर्थ कुटिलता, मायाचार, छलकपट है तथा सर्वार्थसिद्धि अध्याय-6, सूत्र -16 की टीका में कहा गया है- ‘आत्मनः कुटिलभावो माया निकृतिः' माया का दूसरा नाम निकृति या बंचना है माया कषाय भी अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान, संज्वलन के भेद से चार प्रकार की है। इनकी उपमा आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती गो. जीवकाण्ड गाथा - 286 में करते हैं- माया कुटिलता की अपेक्षा बांस की जड़ के समान, मेढ़े के सींग के समान, गोमूत्र के समान, खुरपा के समान । इस प्रकार जीव को क्रमशः नरक, तिर्यच, मनुष्य तथा देवगति की प्राप्ति होती है। - 71 आचार्य शुभचन्द्र ज्ञानार्णव के उन्नीसवें सर्ग में कहते हैं कि'जन्मभूमिरविद्यानाम् कीर्तेर्वासमन्दिरम् । पापपंक महागर्तो निकृतिः कीर्तिता बुधैः ॥ ५८ ॥ अर्गले वापवर्गस्य पदवी श्वभ्रवेश्मनः । शीलशालवने बह्निर्मायेयमवगम्यताम्॥५९॥ माया को इस प्रकार जानो कि वह अविद्या की जन्मभूमि, अपयश का घर, पापरूपी कीचड़ का बड़ा भारी गड्ढा, मुक्ति द्वार की अर्गला, नरकरूपी घर का द्वार और शीलरूपी शालवृक्ष के वन को जलाने के लिए अग्नि है। तत्त्वार्थसूत्र अध्याय 6 सूत्र - 16 में कहा है कि- 'माया तैर्यग्योनस्य' माया तिर्यचगति का कारण है। इसलिए माया कषाय का अभाव मानवीय मूल्यों के आधार पर इस प्रकार है 1. मायाचारी का घर, परिवार, समाज कोई विश्वास नहीं करता । अतः
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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