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अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016
'स्वामिगुरुबन्धुवृद्धानवलावालांश्च, जीर्णदीनादीन्। व्यापाद्य विगतशंको, लोभा” वित्तमादत्ते॥७०॥ ये केचित्सिद्धान्ते दोषाः श्वभ्रस्य साधकाः।
प्रभवन्ति निर्विचारं ते लोभदेव जन्तूनाम्॥७१॥
इस लोभकषाय से पीड़ित हुआ व्यक्ति मालिक, गुरु, बन्धु, वृद्ध, स्त्री, बालक तथा क्षीण, दुर्बल, अनाथ, दीनादि को भी निःशंकता से मारकर धन को गृहण करता है। नरक ले जाने वाले जो-जो दोष सिद्धान्त शास्त्रों में कहे गये वे सब लोभ से प्रकट होते हैं।
आचार्य कल्प टोडरमल जी मोक्षमार्ग प्रकाशक पेज 63 पर कहते हैं कि 'जब इसके लोभ कषाय उत्पन्न होती है। तब इष्ट पदार्थ के लाभ की इच्छा होने से, उसके साधनरूप वचन बोलता है। शरीर की अनेक चेष्टा करता है। बहुत कष्ट सहता है, सेवा करता है, विदेश गमन करता है। जिसमें मरण होना जाने वह कार्य भी करता है। इस प्रकार लोभी व्यक्ति व्यवहार करता है। इसलिए लोभ कषाय का अभाव मानवीय मूल्यो के आधार से इस प्रकार है :1. लोभ के कारण व्यक्ति अनेक पापों में प्रवर्तन करता है। 2. लोभी अनेक प्रकार के सावज्ञ कार्यों में प्रवर्त होता है। जिसमें अनंत जीवों का घात होता है। जैसे- अनावश्यक पेड़ काटना, अग्नि लगाना, पर्यावरण को दूषित करता और पेड़ों को काटकर, पेड़ों से होने वाले लाभों से वंचित करता है। 3. लोभी व्यक्ति अपने लोभ के कारण ऐसे उद्योग, व्यापार, कत्लखाने खोलकर, लाखों-करोड़ों बड़े-बड़े जीवों का घात करके वातावरण को प्रदूषित करता ही है। साथ ही अनेक जन्मों के पापों का संचय करता है। 4. लोभी धनादि के लोभ के खातिर मारना, चोरी करना, अपने निकटस्थ लोगों को मारने की सुपारी देना आदि असामाजिक कार्यों में प्रवर्त होता
5. पैसें का लोभी नावालिग लड़कियों को कैद रखना, वैश्यावृत्ति करवाना आदि कुसामाजिक कार्यों में प्रवर्त होकर मानवीय मूल्यों का ह्रास करता