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________________ अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016 अंग्रेजी अनुवाद स्मिथ ने प्रकाशित किया था। विण्डिश ने अपने विश्वकोष (Encyclopedia of Indo-Aryan Research) में तत्सम्बन्धी विस्तृत विवरण दिया है। इस प्रकार जैन विद्याओं के अध्ययन का सूत्रपात करने वाला तथा शोध एवं अनुसन्धान की दिशाओं को निर्दिष्ट करने वाला विश्व का सर्वप्रथम अध्ययन केन्द्र जर्मनी में विशेष रूप से बर्लिन रहा है। इस क्षेत्र में कार्य वाले होएफर, लास्सन, स्पीगल, फ्रेडरिक हेग, रिचर्ड पिशेल, बेवर, ई. ल्युमन, डॉ. हर्मन जेकाबी, डब्ल्यू. विट्टमन, वाल्टर शूबिंग, लुडविग ऑल्सडोर्फ, नार्मन ब्राउन, क्लास ब्रुहन, गुस्तेब रॉथ और डब्ल्यू. बो बोल्ले इत्यादि जर्मन विद्वान् हैं। प्राच्य विद्याओं की भाँति जैन विद्याओं का भी दूसरा अध्ययन महत्वपूर्ण केन्द्र फ्रांस था। फ्रांसीसी विद्वानों में सर्वप्रथम उल्लेखनीय है-ग्युरिनाट। उनका महत्त्वपूर्ण ग्रंथ 'Essai de Bibliographe Jaina (Eassay on JainaBibliography) पेरिस से 1906 में प्रकाशित हआ। इसमें विभिन्न जैन विषयों से सम्बन्धित 852 प्रकाशनों के सन्दर्भ निहित हैं। 'जैनों का धर्म' (Religion Jaina) पुस्तक उनकी पुस्तकों में सर्वाधिक चर्चित रही। यथार्थ में फ्रांसीसी विद्वान विशेषकर ऐतिहासिक तथा पुरातात्त्विक विषयों पर शोध एवं अनुसन्धान-कार्य करते रहे। उन्होंने इस दिशा में जो महत्वपूर्ण कार्य किए वे आज भी उल्लेखनीय है। ग्युरिनाट ने जैन अभिलेखों के ऐतिहासिक महत्त्व पर विशेष रूप से प्रकाश डाला है। उन्होंने जैन ग्रंथों की सूची के निर्माण के साथ ही उन पर टिप्पण तथा संग्रहों का भी विवरण प्रस्तुत किया था। वास्तव में साहित्यिक तथा ऐतिहासिक अनुसन्धान में ग्रन्थ-सूचियों का विशेष महत्व है। यद्यपि 1897 ई. में जर्मन विद्वान अर्नेस्ट ल्युमन ने 'A List of the Manuscripts in theLibraryat Strassburg', वियेना ओरियन्टल जर्नल, जिल्द 11, पृ. 279 में दो सौ हस्तलिखित दिगम्बर जैन ग्रंथों का परिचय दिया गया था, किन्तु ग्युरिनाट के पश्चात् इस दिशा में क्लाट (Klatt) ने महान् कार्य किया था। उन्होंने जैन ग्रंथों की लगभग 1100-1200 पृष्ठों में मुद्रित होने योग्य अनुक्रमणिका तैयार की थी, किन्तु यह कार्य पूर्ण नहीं हो सका। बेवर और अर्नेस्ट ल्युमन ने 'IndianAntiquery' में उस बृहत् संकलन के
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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