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________________ अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016 आत्म-दष्टि या उपादान-दष्टि से कहा जाता है कि किसी भी कष्ट या असफलता के लिए कोई दूसरा नहीं, व्यक्ति स्वयं जिम्मेदार है। इसे निश्चय नय की दृष्टि भी कह सकते हैं, जिसका समयसार में बहुत विकास मिलता है। जब निश्चय नय सामने नहीं होता है तो व्यक्ति दसरों को दोषी ठहराता है। वह परदर्शन में उलझता है, लेकिन स्वदर्शन या आत्मदर्शन की ओर नहीं आता है। आत्मदर्शन करने वाला स्वयं को देखता है. उपादान देखता है और अन्तरावलोकन करता है। जब व्यक्ति समस्या के मूल की ओर ध्यान देता है तो वह समस्या को स्थायी तौर पर समाप्त करने का पुरुषार्थ करता है। ****** संदर्भ : 1. रत्तो बंधदि कम्म...समयसार, गाथा 150 2. समयसार, गाथा 195 3. समयसार, गाथा 231 4. सोगाणी, कमलचन्द (डॉ.), 'समयसार चयनिका' में प्रस्तावना, पृ.18 5. समयसार, गाथा 197 6. समयसार चयनिका, पृ. 35 (डॉ. कमलचंद सोगाणी द्वारा संपादित) 7. समयसार, गाथा 265 8. समयसार, गाथा 370 9. समयसार, गाथा 200 10. समयसार, गाथा 296, गाथा सं. 295 एवं 297 भी द्रष्टव्य। 11. उत्तराध्ययन सूत्र 23/25 12. समयसार नाटक, बंध द्वार, काव्य क्र. 24-25 13. समयसार, गाथा 99 14. देखें, डॉ. कमलचंद सोगाणी की 'समयसार चयनिका' में प्रस्तावना। 15. समयसार, गाथा 228 16. समयसार गाथा 228 पर आत्मख्याति टीका। 17. समयसार, गाथा 34 18. समयसार, गाथा 404
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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