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________________ 82 अनेकान्त 69/3, जुलाई-सितम्बर, 2016 (2) नहीं है? नहीं कहा जा सकता। (3) है भी और नहीं भी? नहीं कहा जा सकता। (4) न है और न नहीं है? नहीं कहा जा सकता। इस सन्दर्भ से यह फलित है कि वे किसी भी एकान्तवादी दृष्टि के समर्थक नहीं थे। एकान्त का निरसन अनेकान्तवाद का प्रथम आधार बिन्दु है और इस अर्थ में उन्हें अनेकान्तवाद के प्रथम चरण का सम्पोषक माना जा सकता है। यही कारण रहा होगा कि राहुल सांकृत्यायन जैसे विचारकों ने यह अनुमान किया कि संजय वेलट्ठीपुत्त के दर्शन के आधार पर जैनों ने स्याद्वाद (अनेकान्तवाद) का विकास किया। किन्तु मेरी दृष्टि में उनका यह प्रस्तुतीकरण वस्तुतः उपनिषदों के सत्, असत्, उभय (सत्-असत्) और अनुभय का ही निषेध रूप से प्रस्तुतीकरण है इसमें एकान्त का निरसन तो है, किन्तु अनेकान्त स्थापना नहीं है संजय वेलट्ठीपुत्त की यह चतुभंगी किसी रूप में बुद्ध के एकान्तवाद के निरसन की पूर्वपीठिका है। प्रारम्भिक बौद्ध दर्शन में अनेकान्तवाद का आधार विभज्यवाद : भगवान् बुद्ध का मुख्य लक्ष्य अपने युग के ऐकान्तिक दृष्टिकोणों का निरसन करना था, अतः उन्होंने विभज्यवाद को अपनाया। विभज्यवाद प्रकारान्तर से अनेकान्तवाद का ही पूर्व रूप है। बुद्ध और महावीर दोनों ही विभज्यवादी थे। सूत्रकृतांग (1/1/4/22) में भगवान् महावीर ने अपने भिक्षुओं को स्पष्ट निर्देश दिया था कि वे विभज्यवाद की भाषा का प्रयोग करें। (विभज्जवायं वागरेज्जा) अर्थात् किसी भी प्रश्न का निरपेक्ष उत्तर नहीं दे। बुद्ध स्वयं अपने को विभज्यवादी कहते थे। विभज्यवाद का तात्पर्य है प्रश्न का विश्लेषणपूर्वक सापेक्ष उत्तर देना। अंगुत्तरनिकाय में किसी प्रश्न का उत्तर देने की चार शैलियाँ वर्णित हैं- (1) एकांशवाद अर्थात् सापेक्षिक उत्तर देना, (2) विभज्यवाद अर्थात् प्रश्न का विश्लेषण करके सापेक्षिक उत्तर देना, (3) प्रतिप्रश्न पूर्वक उत्तर देना और (4) मौन रह जाना (स्थापनीय) अर्थात् जब उत्तर देने में एकान्त का आश्रय लेना पड़े वहां मौन रह जाना। हम देखते हैं कि एकान्त से बचने के लिए बुद्ध ने या तो मौन का सहारा लिया या फिर विभज्यवाद को अपनाया। उनका
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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