SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 82 अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 जितना कायोत्सर्ग कहा गया है उस काल का अतिक्रमण किये बिना यथोक्त काल तक जिनेन्द्र भगवान् का चिन्तन करते हुए शरीर में ममत्व त्याग विसर्ग या कायोत्सर्ग कहलाता है। इस प्रकार और भी अनेक स्थलों पर आचार्य कुन्दकुन्द के साहित्य में इस विषय को अधिक गहराई से खोजा जा सकता है। संदर्भ : 1. पाइअ-सद्द-महण्णवो, पृ.83 2. नियमसार, 141 3. 'ण वसो अवसो अवसस्सकम्ममावस्सयति बोधत्वा।' 4. नियमसार गाथा-4 टीका 5. नियमसार गाथा 146 6. नियमसार गाथा 146 की टीका 7. टीका श्लोक सं. 253 8. नियमसार गाथा 149 9. स्ववशे जीवन्मुक्त : किंचिन्यूनो जिनेश्वरदोष। श्लोक-243 10. नियमसार गाथा 143 11. वही, गाथा 144 12. वही, गाथा 145 13. 'यावच्चिन्तास्ति जन्तूनां तावभवति संसृतिः। टीका श्लोक-246) 14. मूलाचार 1/22 15. वही 7/11 - श्री लालबहादुर शास्त्री रा. संस्कृत विद्यापीठ, कुतुब इंस्टीट्यूशनल एरिया, नई दिल्ली -110016
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy