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________________ अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 मूकमाटी की अर्थदृष्टि - श्रीमती उर्मिला चौकसे आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के द्वारा विरचित अनुपम महाकाव्य है 'मूकमाटी'। इसमें आत्म-परमात्म, लोक-अलोक, पुण्य-पाप, धर्म-कर्म, दर्शन-प्रदर्शन, राष्ट्र-समाज, उत्थान-पतन, चाल-चलन, भाग्य-पुरुषार्थ, वाद-विचार, व्यष्टि-समष्टि, रूप-स्वरूप, हिंसा-अहिंसा, सत्य-असत्य, स्तेय-अस्तेय, ब्रह्म-अब्रह्म, परिग्रह-अपरिग्रह, अर्थ-परमार्थ आदि पर सम्यक्-रीत्या विवेचन किया गया है। ऐसा माना जाता है कि आधनिक यग अर्थ का है और मेरा मानना है कि हर यग में अर्थ प्रभावी रहा है। तभी तो संस्कृत नीतिकारों ने कहा कि-"सर्वेगणाः काञ्चनमाश्रयन्ति।" आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने 'मूकमाटी' में अर्थ के अनेक पक्षों को समाहित किया है। कुछ इस प्रकार हैंपूंजी निवेश- ऐसा माना जाता है कि यदि अर्थ को बढ़ाना है तो अर्थ का निवेश करो। सही समय पर किया गया सही निवेश यथेष्ट फलदायी होता है। 'मूकमाटी' में वे बड़ के बीज का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि यदि उसे समय पर खाद-पानी मिले तो एक दिन विशाल वटवृक्ष बन जाता है। उनका कथन इस प्रकार है सत्ता शाश्वत होती है, बेटा! प्रति सत्ता में होती हैं/अनगिन सम्भावनायें उत्थान पतन की/खसखस के दाने-सा बहुत छोटा होता है/बड़ का बीज वह! समुचित क्षेत्र में इसका वपन हो समयोचित खाद; हवा, जल/उसे मिलें अंकुरित हो, कुछ ही दिनों में विशाल काय धारण कर वट के रूप में अवतार लेता है। यही इसकी महत्ता है।'
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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