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________________ अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 45 (घ) (ग) सोलहवें जिन शान्तिनाथ की यह प्रतिमा स्वर्ण रंग की कायोत्सर्ग मुद्रा में है। आसन में लांछन 'हिरण' का अंकन है। यह भी श्वेताम्बर मूर्ति है। सत्रहवें तीर्थकर कुन्थुनाथ की प्रतिमा पीत वर्णीय है। मुख, ग्रीवा एवं सिर का लगभग आधा भाग सुरक्षित है और आधा भाग खण्डित है। दाया हाथ स्कन्ध से ही अलग है. किन्त अवशेष स्पष्ट है, बांया हाथ भुजा से खण्डित है। उक्त प्रतिमाओं की भाँति यह भी कटि में 'काती-काच्छिनी' (धोती) से यक्त है। आसन में लांछन 'छाग' या 'बकरा' का अंकन है। (ड) वीर-छबीली टीले से प्राप्त यह पाँचवी जिन चौबीसी कायोत्सर्ग मद्रा की मर्ति अत्यन्त विशिष्ट है। प्रतिमा में मलनायक ऋषभ हैं। दोनों हाथ खण्डित हैं, शेष प्रतिमा पूर्णावस्था में है। परिकर पूर्णरूपेण विकसित हैं। जिन त्रिछत्र से सशोभित हैं। अन्य कलागत विशेषताएं उक्त प्रतिमाओं की भाँति हैं। आसन में वृषभ एवं अभिलेख अंकित हैं। २. ध्यानस्थ तीर्थकर : वीर-छबीली टीले के उत्खनन में प्राप्त प्रमुख ध्यानस्थ तीर्थकर मूर्तियों का वर्णन इस प्रकार है। (क) यह ध्यानस्थ प्रतिमा मस्तक विहीन है। आसन में दोनों किनारों पर सिंह का अंकन है, मध्य में कमल है जिसके ऊपर आसन है। (ख) दूसरी प्रतिमा भी खण्डित है और लांछन एवं अभिलेख रहित है परिकर में दो ध्यानस्थ जिन अंकित हैं। तीसरी प्रतिमा भी ध्यानस्थ है, परन्तु खण्डित है। यह भी लांछन एवं अभिलेख रहित है। यह भी लगभग 10 वीं शती ई0 की हैं। (घ) चतुर्थ प्रतिमा का ऊपरी भाग प्राप्त हुआ है, परिकर की दीवार में चार ध्यानी जिनों का अंकन है। यह लगभग 10वीं शती0 ई0 की (ड.) यह प्रतिमा भी लांछन एवं 'श्रीवत्स' रहित है, जिन शान्त मुद्रा में हैं। परिकर में चारों ओर लगभग चौदह ध्यानी जिनों का अंकन है।
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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