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________________ अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 (च) यह ध्यानस्थ प्रतिमा भी खण्डित है। वक्ष पर श्रीवत्स का अंकन हैं। यह लांछन रहित है। इस प्रतिमा का मस्तक, पाद तथा आसन क्षतिग्रस्त हैं। वक्ष पर 'श्रीवत्स' का अंकन है। यह बिम्ब भी ध्यानावस्था में है। प्रतिमा खण्डित है, किन्तु स्कन्ध पर केश के अवशेष हैं, जिससे इंगित होता है कि यह प्रतिमा प्रथम तीर्थकर 'ऋषभनाथ' की है। यह नीले रंग की बलुआ प्रस्तर की ध्यानस्थ प्रतिमा है। यह सिर विहीन एवं वक्ष तक खण्डित है। इसका रूपायन भी लगभग दसवीं शती ई. में हुआ है। (झ) यह प्रतिमा भी मस्तक विहीन बलुआ पत्थर से निर्मित है। स्कन्ध पर केश के अवशेष से ज्ञात होता है कि यह ऋषभनाथ की प्रतिमा है। अभिलेखानुसार 'आनन्द सुत' और 'क्वचा सेठ' इन दो श्रावकों ने वि.सं. 1091/1034 ई0 में इसकी स्थापना करवाई थी। () यह खण्डित एवं अभिलिखित प्रतिमा है इसकी स्थापना वि० सं. 1091 में अर्थात् 1034 ई. में 'पपासुत' और 'धनपाल महिचला' ने करवाई थी। यक्षी मूर्ति शिल्प : वीर छबीली टीले उत्खनन से तीन यक्षी-प्रतिमाएं भी प्राप्त हुई हैं, जिनकी पहचान उनके वाहनों इत्यादि के माध्यम से की गई है, जो इस प्रकार हैं :(क) प्रथम मूर्ति अम्बिका की है, जो बाइसवें जिन नेमिनाथ की यक्षी है। अम्बिका आमवृक्ष के नीचे बैठी हैं। नासिका और मुख खण्डित है, देवी सिंह पर विराजमान हैं। (ख) दूसरी प्रतिमा भी अम्बिका की है, देवकोष्ठ के भीतर यक्षी उत्कीर्ण हैं। अभिलेखानुसार इसका निर्माण काल 7वीं-8वीं शती है। (ग) तीसरी प्रतिमा बारहवें तीर्थकर वासुपूज्य की यक्षी चण्डी, प्रचण्डी, अजिता अथवा चन्द्रा की है यक्षी 'अश्व' पर विराजमान है। यह श्वेत धब्बे से युक्त लाल बालुआ पत्थर से निर्मित है यह अभिलिखित है यह भी 7वीं शती0 ई0 में निर्मित हुई है।
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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