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________________ अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 1999-2000 ई0 में डॉ0 धर्मवीर शर्मा-पुरातत्त्वविद् आगरा मण्डल, आगरा के निर्देशन में हुआ। परिणाम स्वरूप जैनधर्म से सम्बन्धित सर्वाधिक परासम्पदा उपलब्ध हई। वीर-छबीली टीले से शंग. कषाण और गप्तकालीन प्रतिमाएं एवं अन्य परावशेष प्राप्त हए हैं। छठवी से ग्यारहवीं शताब्दी तक यह क्षेत्र अत्यधिक समृद्ध था। उत्खनन स्थल वीर-छबीली टीले के उत्खनन में 34 तीर्थकर प्रतिमाएं कायोत्सर्ग तथा पद्मासन मुद्रा में प्राप्त हुई हैं। सभी प्रतिमाएं भग्नावस्था में है। कुछ प्रतिमाओं को जोड़ा (Restorate) गया है। छः प्रकार के रंगों वाले बलआ पाषाण से प्रतिमाएं निर्मित हैं- रक्तिम. नील. श्वेत, श्याम, स्वर्ण एवं पीत। सभी प्रतिमाएं सुदृढ़ हैं और ये 7वीं से 11वीं सदी में निर्मित हई हैं। ध्यातव्य हो कि सभी प्रतिमाएं श्वेताम्बर सम्प्रदाय की हैं। १. कायोत्सर्ग तीर्थकर : मानव द्वारा निर्मित गड्ढे से पाँच आदम कद (Life size) कायोत्सर्ग मुद्रा की जिन मूर्तियां उत्खनन से प्राप्त हुई हैं, जिनका वर्णन इस प्रकार है(क) यह श्वेताम्बर प्रतिमा प्रथम तीर्थकर 'आदिनाथ' की है। इस प्रकार की प्रतिमा को जिन-चौबीसी भी कहते हैं। यह स्वर्ण वर्णीय बलआ पत्थर से निर्मित है। यह प्रतिमा मस्तक विहीन तथा कायोत्सर्ग मुद्रा में है। यह जिन दिगम्बर नहीं बल्कि वस्त्र 'काती-काच्छिनी' (एक विशेष प्रकार का वस्त्र अधोवस्त्र है) धारण किए है, साथ ही इसमें एक मजबूत अद्भुत गाँठ और एक लोगो प्रदर्शित है। आसन में 'वृषभ' का अंकन है एवं अभिलेख उत्कीर्ण है जिसके अनुसार प्रतिमा का निर्माण वि0स0 1034/977 ई0 में हुआ। (ख) यह विशिष्ट प्रतिमा तीसरे तीर्थकर 'सम्भवनाथ' की है। उपयुक्त प्रतिमा कला के अतिरिक्त इसके परिकर में चौदह ध्यानस्थ जिन प्रतिमाएं अंकित हैं जिनमें से एक पार्श्वनाथ की प्रतिमा है जो सर्फणों के साथ प्रदर्शित है। आसन में लांछन 'अश्व' एवं अभिलेख उत्कीर्ण है जिसमें वि0स0 1034 अर्थात सन 982 ई0 अंकित है।
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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