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________________ अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 श्रमण संस्कृति जो भारत की मूल संस्कृति से सम्बन्धित है उसे अब से कुछ दशकों पूर्व तक किसी अन्य धर्म या संस्कृति की एक शाखा बतलाकर उसकी उपेक्षा की जाती रही है। जब ये सिन्धु घाटी, मोहन जोदड़ो एवं हड़प्पा से प्राप्त प्राग्वैदिक सभ्यता के साक्ष्य प्राप्त हुए, साथ ही वैदिक साहित्य के परिशीलन से उसमें उपलब्ध आर्येतर परम्पराओं की ओर विद्वानों का ध्यान आकृष्ट हुआ तब से पाश्चात्य एवं सत्यान्वेषी भारतीय मनीषियों ने श्रमण संस्कृति के स्वतंत्र अतिस्तत्व तथा उसकी प्राचीन गौरवपूर्ण परम्परा को एक स्वर से स्वीकृत किया। विशाल वैदिक साहित्य में उल्लिखित व्रात्य, अर्हत, यदि, हिरण्यगर्भ, वातरसना-मुनि, केशी, शिश्नदेव, पणि आदि तथा इसी तरह के अन्यान्य शब्द एवं अनेक तीर्थंकरों के नाम और उनके प्रति आदरपूर्ण शब्दों में रचित सूक्त एवं ऋचायें स्पष्ट ही श्रमण संस्कृति के उत्कर्ष का द्योतन करती है। ___ आर्य एवं द्रविड सभ्यता एवं संस्कृति के सम्बन्ध में इतिहासकारों एवं विशेषज्ञों का मत है कि जब वैदिक आर्य पश्चिमोत्तर सीमा से भारत में प्रविष्ट हुए, उन्हें यहां जिन लोगों से पाला पड़ा वे शिश्नदेव, व्रात्य और वातरसना मुनियों की उपासना करते थे। उनकी सभ्यता अत्यन्त समुन्नत और विकसित थी। इतिहासकारों ने उसे द्रविड सभ्यता का नाम दिया। इस सभ्यता के दर्शन हमें सिन्धु-घाटी के मोहन-जोदड़ो और हड़प्पा में मिलते हैं। इस सभ्यता को नागर-सभ्यता भी कहा जाता है। नागर सभ्यता से नगर नियोजन की उप विकसित परम्परा का आशय लिया जाता है जो इन नगरों में उत्खनन के परिणाम स्वरूप हमें देखने को मिलती है। भारत के मूल निवासी जिनमें द्रविड मुख्य थे, आर्यों की अपेक्षा कहीं अधिक सभ्य, सुशिक्षित और उन्नत थे। ज्ञान, ध्यान एवं योग तप आदि क्रियाएं उनके जीवन में सम्मिलित थीं। वे चतुर कृषक एवं पटु कलाकार थे। वे जीव एवं जगत् के विषय में अनेक मौलिक दार्शनिक चिन्तन रखते थे। उनका आर्यों पर प्रभाव पड़ा। भाषा, कला, स्थापत्य, नगर संयोजना और अन्य क्षेत्रों में भी उनका ज्ञान अधिक विकसित था। आर्यों ने द्रविड़ों को हराकर दक्षिण में खदेड़ दिया और उत्तर भारत में अपना राज्य स्थापित करके अपने को उच्च और विकसित घोषित कर
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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