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________________ अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 31 कर्मों के लिए स्वयं उत्तरदायी है, वह स्वयं अपने भाग्य का निर्माता और स्वकृत कर्मों के फल को भोगता है-"अप्पा कत्ता विकत्ता य सुहाण य दुहाण या" व्यक्ति प्रधानता के क्षेत्र की व्यापकता है। व्यक्ति की स्वतंत्रता तक और यही व्यक्ति स्वातन्त्र्य अहिंसा का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। व्यक्ति स्वातन्त्र्य की रक्षा ही अहिंसा के मूल में निहित रही है। व्यक्ति स्वातन्त्र्य की रक्षा ही अहिंसा के मूल में निहित रही है। व्यक्ति की स्वतन्त्रता का एक अन्य अर्थ है - व्यक्ति की समानता। वस्तुतः यदि देखा जाय तो प्रत्येक व्यक्ति की अपनी स्थिति, गौरव और महत्त्व है। अतः न कोई हीन है और न कोई विशिष्ट- "णो हीणो, णो अइरिते।" व्यक्ति प्रधान है और वह समाज एवं देश की महत्त्वपूर्ण इकाई है। वही व्यक्ति पारस्परिक सम्बन्धों को सुदृढ़ आधार प्रदान करता है। परिणाम स्वरूप परिवार और समाज का निर्माण होता है, जबकि उन सम्बन्धों के विच्छेद की परिणति विराग या संन्यास को जन्म देती है। वह विराग ही श्रमण संस्कृति का मूल है। आध्यात्मिक एवं आत्मवादी होने के कारण श्रमण संस्कति ने भारतीय जन जीवन को अमल्य देन दी है। निवत्ति परक उददेश्यों की प्राप्ति के लिए तथा इस परिभ्रमण शील संसार से आत्मा की मुक्ति के लिए जितना जोर श्रमण संस्कृति ने दिया है उतना किसी अन्य संस्कृति ने नहीं दिया। श्रमण के लिए आत्मा की मुक्ति मुख्य लक्ष्य है, अन्य कार्य गौण हैं। वस्तुतः यदि देखा जाय तो ये दोनों ही तत्त्व एक-दूसरे के पूरक हैं। मोक्ष की प्राप्ति आत्मा को ही होती है। अतः आत्मा का मुख्य लक्ष्य है- मोक्ष की प्राप्ति और आत्मा की प्रवृत्ति मोक्षाभिमुख करने के लिए साधुजन सतत प्रयत्नशील रहते हैं। तदर्थ द्विविध कार्यों की अपेक्षा रहती है:- (1) समस्त कर्मों का संपूर्णतः विनाश या क्षय कर मोक्ष की प्राप्ति और (2) तपश्चरण आदि क्रियाओं के द्वारा कर्मों का क्षय करके आत्मशुद्धि पूर्वक मोक्ष प्राप्ति। ये दोनों ही श्रेणियाँ क्रमशः निवृत्ति एवं प्रवृत्ति मूलक हैं। दोनों का उद्देश्य एक ही है- निष्कर्ष बन जाना। भेद है केवल अनुष्ठान का या प्रक्रिया में। प्रथम अनुष्ठान है कर्म का पूर्णतः परित्याग और द्वितीय अनुष्ठान है कर्म शोधन पूर्वक उसका क्षय।
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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