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अनेकान्त 68/1, जनवरी-मार्च, 2015 अहिंसा का यह कम योगदान नहीं है।
अहिंसा समाजवाद और साम्यवाद की नींव है। लोग आज देश में समाजवाद-स्थापना की बात करते हैं। अहिंसा के पुजारियों ने आज से हजारों वर्ष पहले समस्त विश्व में समाजवाद स्थापित कर दिया था। विश्व के समस्त प्राणियों को समान मानना, न केवल मनुष्यों को, इससे भी बड़ा कोई साम्यवाद होगा? अहिंसा महाप्रदीप की किरणें विकरित हो उद्घोष करती है- जो तुम अपने लिए चाहते हो, दूसरों के लिए समूचे विश्व के लिए भी वही चाहो और जो तुम अपने लिए नहीं चाहते, उसे दूसरों के लिए भी मत चाहो, मत करो। क्योंकि सभी जीव जीना चाहते हैं। एक चेतना की ही धारा सबके अन्दर प्रवाहित होती है। अतः सबके साथ समता का व्यवहार करो, यही आचरण सर्वश्रेष्ठ है। इससे तुम्हारा जीवन विकार वासनाओं से मुक्त होता चला जायेगा और निष्पाप हो जायेगा क्योंकि जो सब जीवों को आत्मवत् मानता है, जो सब जीवों को सम्यक् दृष्टि से देखता है, जो आस्रव का निरोध कर चुका है और जो दान्त है, उसके पापकर्म का बन्धन नहीं होता।। ।
जैन धर्म की यही उदारदृष्टि अहिंसा को इतना व्यापक बना देती है कि उसे समूचे विश्व के साथ सम्बन्ध स्थापित करने में देर नहीं लगेगी। कहा भी गया है कि जिस तरह से सभी नदियाँ अनुक्रम से समुद्र में आकर मिलती है, उसी प्रकार महाभगवती अहिंसा में सभी धर्मों का समावेश होता है। जब समूचा विश्व ही व्यक्ति का हो जाता है तो कौन उसे सत्यं, शिवं और सुन्दरं नहीं बनाना चाहेगा। जिसके हृदय में सहज अहिंसावृत्ति होती है वह कभी किसी प्राणी को पीड़ा उत्पन्न नहीं करता। इस संघर्षमय जीवन से संतृप्त मानव को अहिंसा की शीलत छाया में शान्ति मिल सकेगी, अन्यत्र नहीं। संदर्भ : 1. सा क्रिया कापि नास्तीह यस्यां हिंसा न विद्यते। उपासकाध्ययनकल्प, 26.340 2. श्रावक साधनी बन्ध मोक्ष। सागारधर्मामृत, 4.23 3. जहा जलमज्झे गच्छमाणा अपरिस्सवा नावा जलकतार वीईवयइ, न य विणासं पावइ, एवं साहूवि जीवाउले लोगे गमणादीणि कुव्वमाणो संवरियासवदुवारत्तणेण संसारजलकतारं वीयीवयइ, संवरियासवदुवारस्स न कुओवि भयमत्थि। दशवैकालिकचूर्डि, पृ.159