________________
अनेकान्त 68/1, जनवरी-मार्च, 2015
8. अननुगामी, 9. वर्द्धमान, 10. हीयमान, 11 प्रतिपाती, 12 अप्रतिपाती, 13. अवस्थित, एवं 14. अनवस्थित। 72
63
१. निर्युक्ति के अनुसार अवधिज्ञान- आवश्यकनिर्युक्ति और विशेषावश्यकभाष्यकार ने अवधिज्ञान के क्षेत्र एवं काल की अपेक्षा असंख्यात भेद और द्रव्य एवं भाव की अपेक्षा से अनंत भेद स्वीकार किये हैं। सभी भेद को कहने में असमर्थता बताते हुए चौदह प्रकार के निक्षेप और ऋद्धि का वर्णन किया है।” इस अपेक्षा से अवधिज्ञान के चौदह भेद हैं- 1. अवधि, 2. क्षेत्रपरिमाण, 3. संस्थान, 4. आनुगामिक, 5.अवस्थित, 6. चल, 7. तीव्रमंद, 8. प्रतिपाति - उत्पाद, 9. ज्ञान, 10. दर्शन, 11. विभंग, 12. देश, 13. क्षेत्र और 14. गति । 74
२. षट्खण्डागम के अनुसार- 1. देशावधि, 2. परमावधि, 3. सर्वावधि, 4. हीयमान, 5. वर्द्धमान, 6. अवस्थित, 7. अनवस्थित, 8. अनुगामी, 9. अननुगामी, 10. सप्रतिपाति, 11. अप्रतिपाति, 12. एक क्षेत्रावधि और 13. अनेक क्षेत्रावधि भेद हैं। इन भेदों में निर्युक्तिगत अवधि, संस्थान, ज्ञान, दर्शन, विभंग, देश ओर गति कुछेक भेद स्वीकार नहीं किए हैं। नंदीसूत्र और तत्त्वार्थसूत्र में भी ऐसा ही वर्णन मिलता है। । षट्खण्डागमकार ने निर्युक्तिगत प्रकार बताते हुए देशावधि, परमावधि, सर्वावधि ये तीन प्रकार नये बताये हैं। निर्युक्ति में आनुगामिक - अनानुगामिक ऐसे व्यवस्थित भेद नहीं है, जिसमें षट्खण्डागम में प्रथम तीन प्रकार का एक विभाग और बाद में शेष रहे दस प्रकार दो-दो के जोड़े रूप पांच युग्म स्वतंत्र भेद रूप में प्राप्त होते हैं। निर्युक्ति में आनुगामिक, अनानुगामिक और इनका मिश्र, इसी प्रकार प्रतिपाति, अप्रतिपाति आदि और इनका मिश्र भेद निरूपित है। यहाँ जो मिश्र रूप भेद बताया है। 75 यह मिश्र भेद षट्खण्डागम में नहीं है। इस अन्तर का अर्थ यह भी हो सकता है कि षट्खण्डागम के काल में अवधिज्ञान के प्रकारों को व्यवस्थित करने का और बिना आवश्यकता के भेदों को निकालने का प्रयास हुआ होगा।
आचार्य गुणधर" के अनुसार विषय की प्रधानता से अवधिज्ञान तीन प्रकार का होता है- देशावधि, परमावधि और सर्वावधि । जिसमें से भवप्रत्यय अवधिज्ञान देशावधि और गुणप्रत्यय अवधिज्ञान तीनों प्रकार