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अनेकान्त 68/1, जनवरी-मार्च, 2015 का होता है। वर्द्धमान, हीयमान, अवस्थित, अनवस्थित, अनुगामी, अननुगामी, प्रतिपाती, अप्रतिपाती, एकक्षेत्र और अनेकक्षेत्र, ये दस भेद होते हैं। दस भेद में से भवप्रत्यय अवधिज्ञान में अवस्थित, अनवस्थित, अनुगामी, अननुगामी और अनेकक्षेत्र ये पांच भेद, गुणप्रत्यय अवधिज्ञान में दसों भेद, देशावधि में दसों भेद, परमावधि में हीयमान, प्रतिपाती और एक क्षेत्र इनको छोडकर शेष सात भेद और सर्वावधि में अनुगामी, अननुगामी, अवस्थित, अप्रतिपाती और अनेकक्षेत्र, ये पांच भेद पाये जाते हैं।
३. नंदीसूत्र के अनुसार- नंदीसूत्र में अवधिज्ञान के छह भेद ही मिलते हैं- 1. आनुगामिक, 2. अनानुगामिक, 3. वर्धमान, 4. हीयमान, 5. प्रतिपाति और 6. अप्रतिपाति।।
नंदीसूत्र में ''अहवा गुणपडिवण्णस्स अणगारस्स ओहिणाणं समुपज्जइ...." यह मूल पाठ आया है। गुण का संबन्ध मूलगुण और उत्तर गुण से है। “पडिवण्णस्स अणगारस्स" यह शब्द अन्य का निषेधक नहीं है, किन्तु यहाँ जो गुणप्रत्यय अवधिज्ञान के छह भेदों का वर्णन किया है, वह अनगार की अपेक्षा से ही है। क्योंकि अन्य का अवधिज्ञान अप्रतिपाति नहीं होता है अर्थात् अप्रतिपाति अवधिज्ञान अनगार को ही होता है।
४. तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार- उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्र में अवधिज्ञान के छह भेद प्राप्त होते है- 1. अनुगामी, 2. अननुगामी, 3. वर्धमान, 4. हीयमान, 5. अवस्थित और 6. अनवस्थित।” पूज्यपाद, विद्यानंद, आचार्य नेमिचन्द्र,80 अमृतचन्द्र, पंचसंग्रह 2 में भी मुख्य रूप से अवधिज्ञान के उपुर्यक्त छह भेद ही प्राप्त होते हैं।
नंदीसूत्र और तत्त्वार्थ सूत्र में प्रथम चार भेद समान हैं, लेकिन अंतिम दो भेदों में अंतर है। नंदी में प्रतिपाती, अप्रतिपाती और तत्त्वार्थ सूत्र में अवस्थित, अनवस्थित भेद हैं। लेकिन एक अपेक्षा से विचार करें तो अवस्थित अप्रतिपाती में और अनवस्थित का समावेश प्रतिपाती में हो जाता है।
अकलंक के तत्त्वार्थसूत्र के छह भेदों का उल्लेख करके नंदीसूत्र