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________________ 38 अनेकान्त 68/1, जनवरी-मार्च, 2015 की रचा की थी। विन्ध्यगिरि पर्वत पर चामुण्डराय ने एक त्यागद ब्रह्मदेव नामक स्तम्भ की रचना ई. सन् 974 में कराई थी, जिस पर एक प्रशस्ति भी अंकित है। इस पर्वत के सामने स्थित चन्द्रगिरि पर्वत पर एक भव्य मंदिर है, जो चामुण्डरायवसति के नाम से प्रसिद्ध है। ऐसे ही अन्यान्य भव्य मन्दिरों के निर्माणकर्ता के रूप में चामुण्डराय इतिहास प्रसिद्ध हैं। तत्कालीन शासक ने जिनमत की महिमा बढ़ाने के फलस्वरूप उन्हें 'राय' पदवी से सम्मानित किया था। भारत के प्रथम आश्चर्य के रूप में प्रतिष्ठित श्रवणबेलगोला स्थित भगवान् बाहुबली स्वामी की 58.8' फीट ऊँची प्रतिमा की कथा भी रोचक है", कहते हैं कि - महाराज मारसिंह राचमल्ल द्वितीय की राजसभा में संयोगवश किसी सेठ का आगमन हुआ, जिसने पोदनपुर स्थित बाहुबली भगवान् की प्रतिमा का अनुपम वर्णन किया, जिससे अभिभूत होकर मंत्री चामुण्डराय ने वहीं खड़े होकर प्रतिमा को भाव-नमस्कार किया तथा अपने गुरु अजितसेन के समक्ष प्रतिमा-दर्शन की इच्छा प्रकट की तथा भगवान् बाहुबली के दर्शनोपरान्त ही दुग्धना सेवन की कठिन प्रतिज्ञा कर ली। तत्पश्चात् चतुरगिंनी सेना सहित उत्तर दिशा की ओर प्रस्थान किया। तदनन्तर वे विन्ध्याचल पर्वत पर पहुँचे, वहाँ उन्होंने जिनदर्शन कर रात्रि विश्राम किया। इसी रात्रि में कुष्माण्डिनी देवी (शासन देवी) ने प्रकट होकर कहा- 'पोदनपुर 12 जाने का मार्ग कठिन है। इस पर्वत में रावण द्वारा स्थापित श्री बाहुबली स्वामी का प्रतिबिम्ब है, वह धनुष पर सुवर्ण का बाण चढ़ाकर, पर्वत को छेदने पर प्रकट होगा।' प्रात:काल होते ही चामुण्डराय ने रात्रि में आये स्वप्न का वृतान्त आO नेमिचन्द्र को सुनाया, उन्होंने स्वप्नानुकूल कार्य करने की सलाह दी। गुरु-आज्ञा शिरोधार्य कर चामुण्डराय ने पर्वत भेदन किया, जिससे संपूर्ण लक्षणयुक्त बीस धनुष ऊँची बाहुबली की प्रतिमा प्रकट हुई। उद्देश्य पूर्ण होने पर वे पुनः अपने गृह नगर को लौटे और विंध्यगिरि पर बाहुबली की प्रतिमा का निर्माण कराया। इसका प्रथम कलशाभिषेक ई. सन् 981 में संपन्न हुआ।4
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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