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अनेकान्त 68/1, जनवरी-मार्च, 2015
चामुण्डाराय : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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- डॉ. आनन्दकुमार जैन
महान् चामुण्डाराय का जन्म ईसा की दशवीं शताब्दी में माता काललदेवी की कुक्षि से ब्रह्मक्षत्रियवंश' में हुआ था। इनके पिता महाबलिह± राज्य के प्रसिद्ध श्रावक थे। चामुण्डाराय ने आरम्भिक शिक्षा-दीक्षा गुरु अजितसेन' के सान्निध्य में प्राप्त की थी तथा जैनदर्शन में दक्षता आ. नेमिचन्द के पादमूल में बैठकर प्राप्त की थी। इनकी भगिनी पीयप्पई (पुल्लव्वे) का उल्लेख भी मिलता है, जिनका मरण विजयमंगल में हुआ था । यौवनावस्था में इनका विवाह अजितादेवी से हुआ था। इनसे एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम जिनदेवन था, जो श्रवणबेलगोला निर्मित जिनदेव मंदिर के द्रव्यदाता थे। अतः यह निःसंकोच कहा जा सका है कि इनका समस्त परिवार जिनशासन के प्रति समर्पित
था।
कन्नड़ प्रान्तीय होने से चामुण्डाराय की मातृभाषा यद्यपि कन्नड़ थी, किन्तु वे संस्कृत के भी सिद्धहस्त विद्वान् थे। उक्त भाषाद्वय में प्रवीणता तथा जैनदर्शन का गहन अध्ययन आपकी रचनाओं में आदर्शरूप में प्रतिबिम्बित होता है । चामुण्डाराय के गोम्मट, गोम्मटराय, राय तथा अण्ण- ये नाम प्रचलित थे।' जन्मदात्री माता की इच्छापूर्ति हेतु श्रवणबेलगोला के विन्ध्यगिरि पर्वत पर भगवान् बाहुबली की 57 (58. 8') फीट ऊँची, अतिशयकारी, अद्वितीय प्रतिमा का निर्माण चैत्र शुक्ला पंचमी, विक्रम संवत् 1038 गुरुवार, दिनांक 13 मार्च, 981 और वीर मार्त्तण्ड चामुण्डाराय ने कराया था। 1180 में शिलालेख से ज्ञात होता है कि चामुण्डाराय का घरेलू नाम 'गोम्मट' था इसलिए बाहुबली की प्रतिमा का नाम गोम्मटेश्वर प्रचलित हुआ । " डॉ० ए. एन. उपाध्ये ने ‘गोम्मटेश्वर’ का अर्थ ‘चामुण्डाराय का देवता' किया है।' इस भव्य प्रतिमा का प्रधान शिल्पी अरिष्टनेमि तथा प्रतिष्ठाचार्य स्वयं नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती थे। इसी प्रतिमा की स्तुति में इन्होंने 'गोम्मटेश - थुदि'