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________________ अनेकान्त 68/1, जनवरी-मार्च, 2015 धार्मिक प्रकृति से ओतप्रोत एवं राज्य के प्रति निष्ठा होने से उन्होंने गंगवंशीय तीन पीढ़ियों की सेवा की।15 ग्रंथ परम्पराओं में भी इसका उल्लेख है जैसे बाहुबलिचरित के अनुसार द्रविड देश में एक मथुरा नामक नगरी थी, जो वर्तमान में मडुरा नाम से प्रसिद्ध है, वहाँ देशीयगण के स्वामी श्री सिंहनंदी आचार्य के चरणकमलसेवक गंगवंश-तिलक भी राचमल्ल राजा हुए।।6। जस्टिस मांगीलाल जैन चामुण्डराय का अपर नाम गोम्मटराय नहीं स्वीकारते हैं और न ही सिद्धान्त चक्रवर्ती नेमिचन्द्राचार्य को समकालीन मानते हैं। वे गोम्मटेश्वर प्रतिमा निर्माण का भी निषेध करते हैं, वे लिखते हैं कि- “आचार्य नेमिचन्द्र ने अपने गुरु भाई, शिष्य एवं बालसखा कहे जाने वाले चामुण्डराय का नाम भूलकर भी नहीं लिया और न ही चामुण्डराय ने अपने ग्रंथों में अपने आपको गोम्मटराय ही लिखा है। यह भी कहा जाता है कि स्वयं चामुण्डराय ने अपने पुराण में आ. नेमिचन्द्र का भी जिक्र नहीं किया है। अतः जस्टिस मांगीलाल के अनुसार निष्कर्ष यह निकलता है कि चामुण्डराय न गोम्मटराय हैं और न चामुण्डराय नेमिचन्द्राचार्य के समकालीन थे। उनका कहना है कि यदि मूर्ति चामुण्डराय ने बनवाई होती, तो चामुण्डरायपुराण (978 ई.)में वे इसके बनाने का न सही, किन्तु बनाने के संकल्प का तो अवश्य ही जिक्र करते। इस कृति में उन्होंने अपने सखा गुरुभाई नेमिचन्द्र का उल्लेख नहीं किया है। यदि मूर्ति 981 में प्रतिष्ठित हुई होती तो चामुण्डराय पुराण लिखते समय अथवा समाप्त करते समय इसका निर्माण चल रहा होगा। आश्चर्य यह है कि इस कृति के समापन के आधार पर निर्माणकाल सन् 981 की मान्यता दृढ़ की गई है जबकि मूर्ति के निर्माण में दस वर्ष का समय लगा था।' मिस्टर जस्टिस के उपर्युक्त कथन के विरुद्ध अन्य अनेक तथ्य है जो इस भ्रान्ति को दूर कर चामुण्डराय, गोम्मटेश्वर तथा नेमिचन्द्राचार्य को निःशंकित रूप से समकालीन सिद्ध करते हैं। 1. नेमिचन्द्रचार्य ने त्रिलोकसार की रचना के प्रारंभ में स्पष्ट उल्लेख किया है कि यह ग्रंथ उन्होंने भव्य चामुण्डराय को तत्त्व बोधार्थ रचा
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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