________________
अनेकान्त 68/4, अक्टू-दिसम्बर, 2015
आयुर्वेद और जैनाचार
वैद्यराज पं. धर्मचन्द्र जैन (जैनदर्शनशास्त्री,आयुर्वेदाचार्य)
आयुर्वेद भारतीय आगम का एक मुख्य अंग है। जिसका मूल स्रोत जैनागम के अनुसार चौदह पूर्वो में से 'प्राणिवाद' नामक पूर्व है। जो त्रिकालदर्शी सर्वज्ञ की वाणी है। इसी पक्ष को अन्य भारतीय आगमों में आयुर्वेद को अथर्ववेद के उपागरूप में स्वीकार किया है। वहाँ पर वेदों को अपौरुषेय माना गया है। इन दोनों मान्यताओं का उद्देश्य समान है। वह है इसकी प्रामाणिकता। आप्त वाक्यों को सभी जगह संदेहातीत माना है। आप्तोपदेश का अंश ही आयुर्वेद है। आयुर्वेद एक शाश्वत जीवन शास्त्र है। भले ही इसके उद्गम का इतिहास 4-5 हजार वर्ष से अधिक पुराने उपलब्ध साहित्य के आधार पर न मिलता हो, किन्तु इस ऐतिहासिक धारणा का खण्डन आयुर्वेद शब्द की निरूक्ति एवं अर्थ से ही हो जाता है। तथाहि
आयुषी वेदः आयुर्वेद :- अर्थात् आयु-जीवन या जिन्दगी का जो वेद या शास्त्र है उसे आयुर्वेद कहते हैं। भारतीय शब्द शास्त्रज्ञों ने अनेक निरूक्त्यर्थों द्वारा इसी तथ्य को प्रमाणित किया है। आयु और अनेकार्थक विद्लु धातु से आयुर्वेद शब्द बना है। आयुर्वेद शास्त्र की प्राचीनतम आर्य संहिता सुश्रुत में आयुर्वेद शब्द की कितनी व्यापक विशद निरूक्ति की है सो मननीय है। तथाहि(1) आयुरस्मिन् विद्यते, अनेनवा आयुर्विन्दतीत्यायुर्वेदः। (2) आयुः शरीरेन्द्रिय सत्त्वात्मसंयोगः, तदस्मिन्नायुर्वेद विद्यते अस्तीत्यायुर्वेदः। अथवा (3) आयुर्विद्यते ज्ञायते अनेनेत्यायुर्वेदः। (4) आयुर्विद्यते, विचार्यते अनेन वेत्यायुर्वेदः (5) आयुरनेन विन्दति प्राप्तोतीत्यायुर्वेदः।
अर्थात् इसमें आयु रहती है अथवा इसके द्वारा आयु जानी जाती है अथवा इसके द्वारा आयु के विषय में विचार ऊहापोह किया जाता है अथवा इसके द्वारा आयुष को प्राप्त किया जाता है। इसलिये इसे आयुर्वेद कहते हैं। आयु का अर्थ होता है शरीर, इन्द्रियाँ, मन और आत्मा इनका