SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 68/4, अक्टू-दिसम्बर, 2015 त्रिफला-दारू-हल्दी (94) कुष्ठाधिकार से संबन्धित 176-199 कुल 23 गाथाएं हैं। जोणिपाहुड और उसका वैशिष्ठय1. प्राकृत भाषा का यह ग्रन्थ है। इसमें महाराष्ट्री प्राकृत है, कहीं कहीं पर संस्कृत श्लोक दिए गए हैं। 2. इस जोणिपाहुड में रोग और रोगों के उपचार प्रायः वनस्पतियों से प्राप्त फल-पुष्प, छाल आदि तक दिए गए। 3. जड़-मूल, गुल्म, ता, बेल, पत्र आदि के भी उपचार दिए गए। 4. तिल के तेल, धृत, लवण, चंदनरस आदि से रोगोपचार का उल्लेख है। 5. विरेचन, वमन,उपवास आदि को भी महत्व दिया गया। 6. देह की कान्ति बनाएं रखने के लिए उपटन, लेप एवं विशेष खाद्य पदार्थों को महत्व दिया गया। 7. भोजन में आहारशुद्धि, जलशुद्धि, स्थानशुद्धि आदि को भी महत्व दिया। 8. रोगोपचार के साथ योगिक क्रियाओं पर भी बल दिया गया। प्रथम प्रति में 333 गाथाएं हैं और द्वितीय प्रति इससे भिन्न नहीं, परन्तु इसमें 617 गाथाएं दी गई हैं जो अपूर्ण हैं। इसमें प्राकृत गाथाओं के साथ संस्कृत श्लोक भी हैं। कहीं कहीं पर मंत्र, तंत्र आदि भी दिए गए हैं। इसे पढा भी नहीं. इसके लिपिकार का नाम भी नहीं। ___ - २९, पार्श्वनाथ कालोनी सवीना, उदयपुर (राज.) ३१३००२
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy