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________________ अनेकान्त 68/4, अक्टू-दिसम्बर, 2015 ___ अर्थात् मनुष्य के शरीर में सम अग्नि (अविकृत जठराग्नि) होना, धातुओं का सम होना, वात-पित्त-कफ तीनों का विभ्रम (विकृत) नहीं होना, मलों (स्वेद मूत्र-पुरीष) की विसर्जन किया यथोचित रूप से होना, आत्मा, इन्द्रिय और मन की प्रसन्नता सदैव रहना यह व्यवहारिक स्वास्थ्य का लक्षण है। चिकित्सा योग यहां कतिपय चिकित्सा योगों को उद्धृत करना आवश्यक समझता हूँ ताकि सभी लोग उनका व्यवहार कर उनमें अपेक्षित लाभ उठा सकें। कुछ उपयोगी योग निम्न है1. गिलोय, सोंठ, नागरमोथा और जवासा इन सबका क्वाथ बना कर देने से ज्वर नष्ट होता है। 2. गिलोय, सोंठ और पीपलामूल इन सबका काढा बना कर पीने से वात ज्वर मिटता है। 3. पित्तपापडा, नागरमोथा, चिरायता इनका काढ़ा बनाकर 1-1 तोला प्रातः सायं पीने से पित्त ज्वर नष्ट होता है। 4. मीठा अनार का रस पिलाने से या फालसा के रस में सेधा नमक मिलाकर देने से पित्त ज्वर शान्त होता है। 5. नीम की छाल, सोंठ, गिलोय, कटा पोहकर मूल, कुटकी, कचूर, अडूवा, कायफल, पीपली और शतावरी इनको 3-3 माशा लेकर इनका काढा बनाकर देने से कफज्वर शान्त होता है। 6. कायफल, पीपल, काकडासिगी, पोहकर मूल समभाग लेकर इनका बारीक चूर्ण 3 माशा की मात्रा में मिश्री की चासनी के साथ देने से कफ ज्वर नष्ट होता है। 7. कायफल, पीपलामूल, इन्द्रजौ, भारंगी, सौंठ, चिरायता, काली मिर्च, पीपल, काकड़ासिंगी, पोहकरमूल, रास्ना, दोनों कटेरी, अजमोद, छड़, वच, पाठ, अडूसा, चव्य इन सबको समभाग लेकर 8 माशा का क्वाथ बनाकर दोनों समय देने से सन्निपात ज्वर, सभी प्रकार के वातरोग, पेट का शूल, आफरा, वाय व कफ विकारों का नाश होता है। 8. धनिया और पित्तपापड़ा का क्वाथ पीने से जीर्ण ज्वर (पुराना ज्वर) मिटता है।
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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