SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 34 अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015 यह एक ऐसा आध्यात्मिक दर्पण है जिसके माध्यम से आधुनि पाश्चात्य वैज्ञानिकों तथा तार्किकों ने व्यक्ति की Colour Choice रंग - पसंदगी से उनके आत्मिक भाव जानकर स्वभाव वर्णन किया है जिसे ColourPsycho-analysis कहते हैं। इसका संशोधन मनोवैज्ञानिक अभी कर सके लेकिन भगवान महावीर ने सदियों पहले से ही यह Colour - Psychoanalysis लेश्या के रूप में बतायी। मोहनलाल बांठिया एवं श्रीचन्द चोरडिया ने 'साइक्लोपीडिया आफ लेश्याकोश की प्रस्तावना में लेश्या को जैनदर्शन का रहस्यमय विषय कहा है। लेश्या' - कषाय से अनुरंजित जीव की मन, वचन, काय की प्रवृत्ति लेश्या कहलाती है- ‘कषायोदयानुरंजित योगप्रवृत्तीति लेश्या ।' प्राचीन काल से ही व्यक्ति के आवेगों तथा मनोभावों के शुभत्व एवं अशुभत्व का सम्बन्ध व्यक्तित्व से जुड़ा है । कषाय सिद्धान्त केवल अशुभ आवेगों की चर्चा करता है और लेश्या - सिद्धान्त शुभ और अशुभ दोनों मनोभावों की । आगम में इनका कृष्णादि छह रंगों द्वारा निर्देश किया गया है। इनमें तीन शुभ और तीन अशुभ होती है। राग व कषाय का अभाव हो जाने से मुक्त जीवों को लेश्या नहीं होती है। शरीर के रंग को द्रव्य लेश्या कहते हैं। देव नारकियों में द्रव्य व भाव लेश्या समान होती है, पर अन्य जीवों में इनकी समानता का नियम नहीं हैं द्रव्य लेश्या आयु पर्यन्त एक ही रहती पर भाव लेश्या जीवों के परिणामों के अनुसार बराबर बदलती रहती है। लेश्या और कषाय का अबिनाभावी सम्बन्ध नहीं है। जहाँ कषाय है वहाँ लेश्या अवश्य है लेकिन जहाँ लेश्या है वहाँ कषाय नहीं भी हो सकती। लेश्या परिणाम कषाय- परिणाम के बिना भी होता है । लेश्या और योग में अविनाभावी सम्बन्ध है । जहाँ योग है, वहाँ लेश्या है। जो जीव सलेशी है वह सयोगी है तथा जो अलेशी है, वह अयोगी भी हैं जो जीव सयोगी है वह सलेश है तथा जो अयोगी है वह अलेशी भी है। योग परिणाम ही लेश्या है क्योंकि सयोग केवली शुक्ललेश्या परिणाम में विहरण करते हुए अवशिष्ट अन्तर्मुहूर्त में योग का निरोध करते हैं तभी वे अयोगीत्व और अलेश्यत्व को प्राप्त होते हैं।
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy