SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015 31 31 इसिभासियाई, 38.4- 932 इसिभासियाई, 29.5 33 इसिभासियाई,29.15 34 इसिभासियाई, 29.17 35 इसिभासियाई, 45.8 36 इसिभासियाई, 4.12 37 आत-कडाण-कम्माणं, आता भुंजति तं फलं। तम्हा आतस्स अट्ठाए, पावमादाय वज्जए।। - इसिभासियाई, 15.21 38 इसिभासियाई, 24.19 39 इसिभासियाई, 30.4 40 इसिभासियाई, 31.7-8 41 इसिभासियाई, 9.8 42 जहा अंडे जहा बीए, तहा कम्मं सरीरिणं। संताणे चेव भोगे य, नाणावण्णत्तमच्छति।। 9.9 43 इसिभासियाई, 9.4 इसिभासियाई, 9.2 45 उवक्कमो य उक्केरो, संछोभो खवणं तधा। बद्धपुट्ठविधात्ताणं, वेदणा तु णिकायिते।। -इसिभासियाई, 9.15 46 इसिभासियाई, 24.20 47 इसिभासियाई, 24.25 48 इसिभासियाई, 22.1 49 इसिभासियाई, 31.7-850 इसिभासियाई, 1. 2 51 इसिभासियाई, 5.3 52 इसिभासियाई, 17.8 53 (अ) सिवमयलमरुयमक्खयमत्वाबाहमपुणरावत्तं सासयं ठाणं।9.3 (ब) सिवमयलमरुयमक्खमव्वाबाहमपुणरावत्तयं सिद्धि गतिलामधिज्ज।।23.2 54 (प) दुद्दता इंदिया पंच, संसारा ए सरीरिण। ते च्चेव णियमिता संता, णेज्जाणाए भवंति हि ।।- इसिभासियाई, 16.3 (पप) इसी से मिलती-जुलती गाथा वर्द्धमान अधययन में भी प्राप्त होती है, यथा- दुइंता इंदिया पंच, संसाराय सरीरिण। ते चेव णियमिता सम्म, णेव्वाणाय भवंति हि।।- इसिभासियाई, 219.13 55 वही, 16.1 56 इसिभासियाई, 29.2 57 मणुण्णम्मि अरज्जते, अदुठे इतरम्मि य। असुत्ते अविरोधीणं, एवं सोते पिहिज्जति।।- इसिभासियाई, 29.4 58 इसिभासियाई, 29. 14-15 59 इसिभासियाई, 29.16 60 जित्ता मणं कसाए य, जो सम्म कुरुते तवं। संदिप्यते स सुद्धप्पा, अग्गी वा हविसाऽऽहुते।। -इसिभासियाई, 29.17 आतठ हायते तस्स, जो परठाहि धारए।। -इसिभासियाइं 35.15 62 इसिभासियाई, 35.1463 इसिभासियाई, 35.13 64 वही, 35.17 65 वही, 35.20 66 वही, 35.24
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy