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________________ अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015 11 ___ अर्थात् दर्शनमोहनीय कर्म के उदय होने पर जो निश्चय से शुद्धात्मरुचि से हीन विपरीत अभिनिवेश रूप परिणाम है तथा व्यवहार से जो रत्नत्रय एवं तत्त्वार्थ रुचि से हीन विपरीत अभिनिवेश रूप परिणाम है, वह दर्शनमोहनीय है। वास्तव में जो तत्त्वार्थ के श्रद्धान को विपर्यासित कर देता है, वह दर्शनमोहनीय कर्म है। दर्शनमोहनीय कर्म के आस्रव के कारण पर विचार करते समय सहसा यह विचार आता है कि आचार्य उमास्वामी ने काय, वचन एवं मन की क्रिया को योग कहा है तथा उस योग को ही आस्रव माना है'कायवाङ्मनःकर्म योगः। स आश्रवः।१२ आत्मा के प्रदेशों में जो परिस्पन्दन होता है, उसका नाम योग है। यह या तो शरीर के निमित्त से होता है या वचन के निमित्त से होता है या मन के निमित्त से होता है। इसलिए निमित्त के भेद से योग को काय, वचन, मन रूप तीन प्रकार का कहा गया है। यह योग आस्रव कहलाता है। यहाँ यह अवधेय है कि आस्रव के लिए तीनों का होना अनिवार्य नहीं है। एकेन्द्रिय जीव के तो केवल एक काययोग ही होता __ भावयोग और द्रव्ययोग के भेद से योग के दो भेद भी हैं। कर्म एवं नोकर्म के ग्रहण करने में निमित्तभूत आत्मा की शक्ति विशेष को भावयोग कहते हैं और उस शक्ति के कारण जो आत्मा के प्रदेशों में परिस्पन्दन होता है, उसे द्रव्ययोग कहते हैं। योग के निमित्त से आस्रव के जो शुभ और अशुभ दो भेद कहे गये हैं, वे अघातिया कर्मो की अपेक्षा से हैं, क्योंकि उन्हीं में पुण्य एवं पाप प्रकृतियाँ होती हैं। घातियाकर्म तो पापरूप ही होते हैं, अतः वे अशुभ ही हैं। ___ केवली के अवर्णवाद, श्रुत के अवर्णवाद, संघ के अवर्णवाद, धर्म के अवर्णवाद और देव के अवर्णवाद से दर्शनमोहनीय कर्म का आस्रव होता है। पूज्यपाद स्वामी के अनुसार गुणवान् महान् व्यक्तियों में जो दोष नहीं है, उनकी उनमें उद्भावना करना अवर्णवाद कहलाता है- 'गुणवत्सु महत्सु असद्भूतदोषोद्भावनमवर्णवादः।१३ केवली में वीतरागता और सर्वज्ञपना संभव नहीं है, क्योंकि जगत् में सभी प्राणी रागद्वेषी एवं अज्ञानी देखे जाते हैं। यह केवली का अवर्णवाद है। आगमज्ञान प्रमाण नहीं है, क्योंकि उसमें अज्ञात वस्तुओं का उपदेश होता है, यह श्रुत का अवर्णवाद है। संघ केशलोंच का दुःख भोगता है, वे नरक आदि
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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