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________________ अनेकान्त 68/1, जनवरी-मार्च, 2015 आचार्य हरिभद्र का अनेकांतवाद और उपयोगिता -अतुल कुमार प्रसाद सिंह “अनेकांतजयपताका' के रचनाकार आचार्य हरिभद्र का पूरा जीवन विभिन्न दर्शनों के अध्ययन और मनन को समर्पित रहा । उनका जीवन दर्शन भी बहुत ही उच्च कोटि का रहा है। आचार्य हरिभद्र ने लोक कल्याण की भावना से ही अपने सारे साहित्य का सृजन किया। उनमें यह लालसा नहीं थी कि उनकी रचनाओं के माध्यम से उनका नाम और यश हो। इसीलिए उनकी रचनाओं में उनके जीवन संबंधी तथ्यों का उल्लेख नहीं मिलता है। इस कारण उनके जन्म और मृत्यु के समय को ठीक-ठीक बता पाना ही कठिन है। आचार्य हरिभद्र के संबंध में उनके समकालीन अथवा परवर्ती जैन आचार्यों ने जो उल्लेख अपनी कृतियों में किया है, उन्हीं के आधार पर आचार्य के समय तथा मृत्यु का निर्धारण किया जा सकता है। __ जैन दर्शन की परम्परा में आचार्य हरिभद्र एक ऐसे दार्शनिक के रूप में जाने जाते हैं, जिनमें समन्वयवादी दृष्टि तो थी ही, विषय की गंभीरता, तार्किकता और संप्रदायों से ऊपर रहने वाले आचार्य की छवि भी थी। जिस कालखंड में हरिभद्र पैदा हुए, उसमें दार्शनिकों के बीच एक-दूसरे के मतों का खंडन करने और अपनी धारा को येन-केन-प्रकारेण सही साबित करने की होड़ लगी रहती थी। ऐसी परिस्थिति में व्यक्तिगत अहं के टकराव के कारण अगर किसी का नुकसान हो रहा था तो वह था दर्शन और धर्म। ऐसे युग में हरिभद्र एक ऐसे दार्शनिक चिंतक के रूप में हमारे सामने आए जो अपने युग की अनुदार और संकुचित दृष्टि से पूर्णतया मुक्त रहे। यह उनकी उदार एवं सहिष्णु दृष्टि का ही परिणाम था कि वे अपने विरोधी दर्शनों में निहित सत्य का दर्शन कर सके और जैन परंपरा की अनेकांत दृष्टि के आधार पर उसका समन्वय कर सके। षड्दर्शनसमुच्चय और शास्त्रवार्तासमुच्चय जैसे उनके दार्शनिक ग्रंथ उनकी उदारता और तटस्थ दृष्टि का ही उद्घोष करते हैं। हरिभद्र एक उत्कृष्ट दार्शनिक होने के साथ ही धार्मिक क्षेत्र में भी महान क्रांतिदूत और समाज सुधारक थे। अपने
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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