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________________ अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015 मीमांसा" प्रकाशित हुई। तत्पश्चात् 1917 में 'ग्रन्थ परीक्षा' के प्रथम व द्वितीय भाग, सन् 1921 में - तृतीय भाग और 1934 में चतुर्थ भाग प्रकाश में आये। 'ग्रन्थ परीक्षा' प्रथम भाग में आपने 'उमास्वामी श्रावकाचार, कुन्दकुन्द श्रावकाचार और “जिनसेन त्रिवर्णाचार' इन तीन ग्रन्थों की परीक्षा की। इसी प्रकार द्वितीय भाग में 'भद्रबाहु संहिता' तृतीय भाग में भट्टारक सोमसेन के त्रिवर्णाचार, धर्म परीक्षा, अकलंक प्रतिष्ठा पाठ और पूज्यपाद उपासकाचार तथा चतुर्थ में सूर्यप्रकाश ग्रन्थ का परीक्षण किया। 'मेरी भावना' और युगवीर- एक दूसरे के पर्यायवाची __'मेरी भावना' पं. जुगलकिशोर 'मुख्तार' की जीवन साधना का मानो घोषणापत्र था। जो सर्वप्रथम 'जैनहितैषी' पत्रिका के अप्रैल-मई 1916 के संयुक्तांक में प्रकाशित हुई और आज यह एक कालजयी रचना बन गयी है। यह कृति अत्यन्त लोकप्रिय हुई जिसका अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू, बंगला, गुजराती, मराठी और कन्नड़ भाषाओं में अनुवाद भी हुआ जिसका उल्लेख कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' ने अनेकान्त (जन. 1944) में किया था। मुख्तार साहब की एक बड़ी विशेषता थी कि वे प्राचीन हस्तलिखित पोथियों और गुटकों की तलाश में रहते थे और कोई उत्कृष्ट कृति मिल गई तो उसकी अन्य दूसरी प्रति विभिन्न ग्रन्थ भण्डारों से मँगाते और उनका गम्भीर अध्ययन कर तुलनात्मक पाठ-भेद खोजकर शुद्ध पाठ को स्वीकार कर उसका अनुवाद करते तथा उसकी मौलिक प्रस्तावना भी लिखते थे। एक बार कानपुर के प्रसिद्ध हकीम श्री कन्हैयालाल जी के आग्रह पर शास्त्र प्रवचन हेतु कानपुर पधारे। हकीम जी के मकान के नीचे एक पंसारी की दुकान थी। जब वे मंदिर जा रहे थे, उन्होंने पंसारी को एक हस्तलिखित ग्रन्थ के पन्ने फाड़कर उनमें सोंठ, हल्दी मिर्च की पुड़िया बनाते देखा। उनकी पैनी दृष्टि ने यह ताड़ लिया कि यह कोई महत्वपूर्ण जैन कृति होना चाहिए। वे तुरन्त पंसारी के पास गये। विनम्रता से बोले- यह जिनवाणी है इसकी यह कैसी दुर्दशा हो रही है? कृपया यह वस्ता मुझे दे दो। बदले में, में अखबार लाकर देता हूँ और चाहो तो कुछ कीमत भी। पंसारी भोला था। हकीम जी का किरायेदार था। उसने वह वस्ता मुख्तार साहब को दे दिया। उस बस्ते को जब मुख्तार साहब ने खोला तो उन्हें एक ऐसी कृति मिल गई, जिसकी मुख्तार साहब को वर्षो से तलाश थी। वे अत्यन्त आनंदित हुए। इस प्रकार उनका प्राचीन-साहित्य और इतिहास से बहत लगाव था। ******
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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