SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015 का सम्पादन अबाधगति से किया। स्व. पं. नाथूराम 'प्रेमी' जो हिन्दी सत्साहित्य प्रकाशन के भीष्मपितामह माने जाते थे, आपकी कर्मठता और हिन्दी सत्साहित्य प्रकाशन की तथा स्व. बाबू राजेन्द्रप्रसाद (भारत के प्रथम राष्ट्रपति) ने अपनी आत्मकथा में आपकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। 'प्रेमी' जी के ही आग्रह पर आपने 'जैन हितैषी' का सम्पादन सन् 1919 में अपने कंधों पर लिया और उसे नया स्वरूप दिया। सन् 1920 में आपका एक काव्य संकलन 'वीर पुष्पांजलि' नाम से प्रकाशित हुआ। उस समय वह समाज के घोर विरोध का सामना कर रहे थे। परन्तु अपनी स्थापित मान्यताओं की अकाट्यता से वे विरोधियों से लोहा लेने में पीछे नहीं हटे। उनकी निम्नांकित चार पंक्तियाँ उनके अटूट विश्वास और दृढ़ स्वभाव को रेखांकित करती हैं। सत्य समान कठोर, न्यायसम पक्ष-विहीन, हूँगा मैं परिहास रहित, कूटोक्ति क्षीण। नहीं करूँगा क्षमा, इंच भर नहीं टलूँगा, तो भी हूँगा मान्य, ग्राह्य श्रद्धेय बनूँगा। 1929 में आपने दिल्ली के करोलबाग में 'समन्तभद्राश्रम' की स्थापना की एवं अनेकान्त मासिक का प्रकाशन प्रारम्भ किया। बाद में उसका नाम 'वीर सेवा मन्दिर' संस्था परिवर्तित कर इस संस्था को दिल्ली से सरसावा ले गये। क्षु. गणेशप्रसाद वर्णी जी की प्रेरणा से सन् 1951 में इसे पुनः दिल्ली ले आये। 16 जुलाई 1954 वीर शासन जयन्ती के सुअवसर पर इसके भव्य भवन का उद्घाटन स्व. साहू शान्ति प्रसाद जी के करकमलों से हुआ। इस संस्था के भवन के निर्माण में स्व. लाला राजकृष्ण (कोयले वाले) का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। ___ सन् 1928 में 'मेरी द्रव्य पूजा' और 1933 में पूज्यपाद देवनन्दी की सिद्ध-भक्ति के पद्यानुवाद 'सिद्धिसोपान' नाम से प्रकाशित हुई। साथ ही उनकी काव्य कृतियों का एक प्रशस्त संकलन 'युग भारती' के नाम से भी प्रकाशित हुआ। पं. जगलकिशोर जी की साहित्य साधना का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष रहा तत्कालीन सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार और प्राचीन जैन साहित्य का अन्य सम्प्रदायों के साहित्य के साथ तुलनात्मक अध्ययन, समीक्षा, शोध-मंथन आदि का निर्भीकता से प्रकाशित करना। सन् 1913 में आपकी “जिनपूजाधिकार
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy