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________________ अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015 स्थायी-स्तम्भ : 'युगवीर' गुणाख्यान वीर सेवा मन्दिर के संस्थापक-पं. जुगलकिशोर 'मुख्तार' का जीवनवृत्त एवं साहित्य साधना -पं. निहालचंद जैन, निदेशक वीर सेवा मंदिर जीवन परिचय : जैन पुरातत्त्व इतिहास एवं साहित्य के पुरोधा, प्राच्यविद्या-महार्णव, आचार्य पं. जुगलकिशोर 'मुख्तार युगवीर' जैन साहित्य-जगत के भीष्मपितामह रहे। इन्हें जैनविद्या शोध के युग-पुरोधा कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। सरसावा (सहारनपुर) में जन्मे (20 दिसम्बर 1877) आपका बचपन एक मेधावी, प्रतिभा सम्पन्न श्रमशील छात्र के रूप में रहा। घर के धार्मिक संस्कारों का प्रभाव ऐसा पड़ा कि वे नियमित पूजा-पाठ व शास्त्र स्वाध्याय करने लगे। ____1902 में मुख्तारगिरी (वकालत) की परीक्षा पास की और सहारनपुर में अपनी वकालत की प्रेक्टिस शुरू की। बाद में 1905 में देवबंद में वकालत करने लगे। धर्मपत्नी के दिवंगत (1918) होने के पश्चात् वे साहित्य साधना की ओर उन्मुख हुए और तत्कालीन त्रिमूर्ति-बाबू सूरजभान जी वकील, डॉ. ज्योतिप्रसाद जी एवं बाबू जुगलकिशोर जी ऐसे क्रांतिकारी विचारधारा के प्रचारक बने जिन्होंने जैन समाज की कुरीतियों और रूढ़ धर्मिक मान्यताओं के विरोध में आवाज उठायी और अन्तर्जातीय विवाह एवं दस्सा पूजाधिकार का समर्थन किया। साहित्य-साधना : ___ काव्य-रचना के अंकुर मुख्तार साहब में बाल्यकाल से ही अंकुरित हो गये थे। आचार्य पद्मनंदी की 'अनित्य पंचाशत्' कृति युवा कवि जुगलकिशोर को इतनी पसन्द आयी कि उन्होंने उसका पद्यानुवाद कर डाला जो 1914 में 'अनित्य भावना के नाम से प्रकाशित हुआ। सन् 1914 में मुख्तारी छोड़ने के बाद आपका पूरा समय साहित्य साधना में व्यतीत होने लगा। तत्कालीन प्रसिद्ध साप्ताहिक जैन पत्र "जैन गजट" के वे सम्पादक बने। उस समय इसकी प्रसिद्धि बुद्धिजीवियों में अत्यधिक थी। अपने क्रांतिकारी विचारों से सुप्त जैन समाज को झकझोर दिया था। आपने सन् 1918 तक जैन गजट
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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