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________________ 16 अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015 ___ - वस्तुतः संघर्ष का जनक हमारी आग्रह वृत्ति है। आग्रह वृति-सत-असत और हेय-उपादेय को नहीं, स्वार्थ को देखती है। आग्रह वृति से मिथ्यात्व को बल मिलता है और जहाँ मिथ्यात्व है, वहां अविवेक है। अविवेक संघर्ष और युद्ध रचता है। ___ - महाभारत अविवेक का संग्राम था, जो आग्रह की भूमि पर लड़ा गया था। __ - भगवान महावीर ने स्याद्वाद और अनेकान्त के आलोक में सह अस्तित्व को प्राण दिये। आचरण में रूपायित हुआ अनेकान्त- सह अस्तित्व की अनुकम्पा से। ___ - सह अस्तित्व के आंगन में 'परस्परोपग्रहोजीवानाम्' का अमर सूत्र पुष्प बनकर फला फूला। प्रत्येक प्राणी सापेक्षता और सह अस्तित्व से जुड़ा है। एक का उपकार दूसरे को उपकत कर रहा है। इसके बिना न जीवन संभव है और न जीवन का विकास। - प्रकृति में अकारण कुछ नहीं है। भले ही हमारी अज्ञानता उसमें प्रयोजन न ढूंढ पाये। वृक्ष हमसे सांसे ले रहा और हम वृक्षों के कारण प्राणवायु पा रहे हैं। मनुष्य मनुष्य से ही नहीं वृक्षों तक से जुड़ा है। लेकिन हमारा अहंकार हमें तोड़ता है। अहंकार समस्याएं पैदा करता है। - सह अस्तित्व आदमी को आदमी से ही नहीं, वरन् चराचर से जोड़ता है। वह समस्याओं का निरसन का विश्वशांति की स्थापना में अहम भूमिका निभाता है। संयम- मनुष्य के पास 'ज्ञान का अनंत भण्डार है। उसकी पकड़ में सब कुछ कैद हो रहा है, केवल वह स्वयं को नहीं पकड़ पा रहा है। स्वयं को नहीं खोज पा रहा है। महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन मृत्यु शय्या पर थे। एक पत्रकार ने उसने अंतिम इच्छा जाननी चाही कि मरने के बाद दूसरे जन्म में आप क्या होना चाहेंगे? आइन्स्टीन ने कहा- कुछ भी हो जाऊँ पर एक वैज्ञानिक नहीं। __जिसने सारी जिन्दगी विज्ञान के लिए समर्पित की हो उसके मन में विज्ञान के प्रति इतना अफसोस। आइन्स्टीन ने कहा- सुबह 10 बजे डाक्टरों ने जबाव दे दिया कि तुम चौबीस घंटे से ज्यादा नहीं जी सकोगे। मैंने सैकड़ों
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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