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अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015
महावीर जयंती ०२ अप्रैल २०१५ पर विशेष
भगवान महावीर की प्रासंगिकता
- सिद्धार्थ कुमार जैन
युग पुरुष तीर्थकर कालातीत होते हैं। कैवल्यज्ञान का दिव्य अवदान उन्हें अमरता की सौगात दे जाता है। वे समय की धारा में विलीन नहीं होते हैं। जब भीतर, आलोकित हो जाता है, तो बाहर के कुहासे/ अंधकार मिट जाते हैं। अंधकार तो अज्ञान और मोह का होता है, भगवान महावीर के भीतर से मोह और अज्ञान का अंधेरा समाप्त हो जाने से वे सर्वकालिक ज्योतिर्धर बन गये।
भगवान महावीर की पहचान बाहरी वैभव या चमत्कार से नहीं जुड़ी है। वे सर्वदैशिक व सर्वकालिक इसलिए हो गये कि उन्होंने अपनी आत्म वृत्तियों से युद्ध कर और अन्त:कषायों को परास्त कर विजयी बने। इस आत्मदेवत्व के कारण वे महावीर कहलाये। किसी बाहरी युद्ध के विजय से नहीं, आत्म विजय के कारण उनकी जन्म-जयंती/ जन्म कल्याणक ढाई हजार वर्षों से पूज्य भाव एवं श्रद्धा से मनती आ रही है।
मानवीय- मूल्य कभी पुराने नहीं पड़ते। महावीर की दिव्य- देशना, मानवीय- मूल्यों के संरक्षण/ संवर्द्धन के लिए भारत वसुंधरा पर हुई थी। जिनकी देशना में (1) समता (2) सहिष्णुता (3) सहअस्तित्व (4) संयम
और (5) स्वतंत्रता के पंचशील सूत्र उदभासित हुए थे जो आज भी उतने ही सामयिक और प्रासंगिक हैं जितने उस समय थे जब दिव्य ध्वनि से अवतरित हुए थे।
समता- यह प्रकृति का अवदान है। इसलिए महावीर सा नैसर्गिक पुरुष दूसरा खोज पाना मुश्किल है। उनमें आकाश सी निरालंबता और तरुवर सी निसर्गता थी। जैसे प्रकृति ने उन्हें अवतरित किया हो। आवरण