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________________ अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015 निधि के समान स्थापित कर लिया। वे स्वयं गुरु-चरणों की सेवा करते हुए वहीं स्थित रहे। ठीक ही कहा गया है कि- "तीनों लोकों में गुरु की विनय ही महान् है।" __घत्ता- उधर आचार्य विशाखनन्दि-श्रमण (मुनि) अपने संघ-सहित चोल-देश में पहुँचे और इधर, जो-जो आचार्य पाटलिपुत्र में ठहर गये थे, वहाँ (पाटलिपुत्र में) उन्हें अत्यन्त भयंकर दुष्काल का सामना करना पड़ा। मुनि प्रभाचन्द्र (चन्द्रगुप्त) जब तपस्यारत थे तभी आचार्य विशाखनन्दि अपने 12000 साधुसंघ के साथ चोल-देश से वापिस कटवप्र लौटकर आये। तब उस निर्जन गहन-वन में उनकी आहार-चर्या की विषम-समस्या उत्पन्न हो गइ। इसी चिंता में एक दिन निकल गया। ___ अगले दिन महामुनि प्रभाचन्द्र (चन्द्रगुप्त) ने आचार्य विशाख से एक विशिष्ट दिशा की ओर संकेत करते हए ससंघ कान्तार-चर्या (वन्य-प्रान्त में आहार-चर्या) हेतु जाने का निवेदन किया। समयानुसार वे चले और निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचे। वहाँ जाकर उन्होंने देखा कि सभी संघ के आहार-हेतु शास्त्रीय पद्धति से व्यवस्था है। पूरा नगर सजा हुआ था। श्रावकों ने उनको पडगाह कर आहार-दान दिया और सभी प्रमुदित हो उठे। वहाँ से प्रस्थान करते समय एक साधु ने अपने कमण्डल एक वृक्ष की टहनी पर लटका दिया और नगर-सौन्दर्य देखते-देखते उस कमण्डल को उठाना ही भूल गया और सभी के साथ वापिस अपनी कुटी पर लौट आया। स्मरण आते ही वह कमण्डल उठाने गया तो कमण्डल तो मिल गया किन्तु सजा-धजा नगर लुप्त था तथा वहाँ केवल गहन-वन ही देखने को मिला। वस्तुतः यह कठोर तपस्वी महामुनि प्रभाचन्द्र (चन्द्रगुप्त) की तपस्या का दैवी-चमत्कार ही था कि इतने बड़े साधु संघ के लिये भी वहां विधिपूर्वक आहार-दा.न मिला। इसके बाद वे प्रभाचन्द्र महामुनि तो कटवप्र पर ही तपस्यारत रहे किन्तु आचार्य विशाख ने ससंघ पाटलिपुत्र की ओर विहार किया। ___इसके बाद ही महाकवि रइधू ने अपने भद्रबाहु-चाणक्य-चन्द्रगुप्त-कथानक में भद्रवाहुकालीन (ई.पू. चतुर्थ सदी) द्वादश-वर्षीय भीषण दुष्काल तथा अन्य अनेक दुखद रोमांचक घटनाओं की चर्चा की है, जो इतिहास की दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण है। -बी-५/४०सी,सेक्टर-३४,धवलगिरि ,नोएडा( यू.पी.)२०१३०१
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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