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अनेकान्त 68/1, जनवरी-मार्च, 2015 दृष्टिकोण से ऊपर किये गए विश्लेषण को हृदयंगम करें तो निःसन्देहरूप से समझ में आ जाएगा कि जिन लोगों ने भी ‘क्रमनियमित परिणाम' का अर्थ 'क्रमबद्ध पर्याय' करने की कोशिश की है उन्होंने ‘सन्दर्भ-संगति' एवं 'पूर्वापर-अविरोध' - शास्त्रों का सम्यग् अर्थ करने की पद्धति के इन दो सर्वमान्य एवं अपरिवर्त्य नियमों की अवहेलना की है। (ख) तत्त्वप्रदीपिका वृत्ति से अविरोध :
प्रवचनसार, गाथा १०० की तत्त्वप्रदीपिका टीका का ऊपर उद्धृत किया गया वाक्यांश ('व्यतिरेकाणाम् अन्वय-अनतिक्रमणात्') एवं समयसार, गाथा ३०८-३११ की आत्मख्याति टीका का प्रकृत कथन ('पर्यायों का क्रमनियमन'), इन दोनों का एक ही अभिप्राय है। संस्कृत काव्य एवं गद्य, दोनों ही प्रकार की रचनाओं में भाषा की निष्णात प्रौढ़ता के लिये प्रसिद्ध२३, आचार्य अमृतचन्द्र की लेखनी से यदि एक ही वस्तु-तथ्य की अभिव्यक्ति के लिये दो भिन्न रचनाओं में भिन्न-भिन्न शब्दावली निःसृत हुई है तो यह भाषा दोनों ही पर उन महान विद्वान के सहज अधिकार का सुपरिणाम है; किसी भी सजग एवं सदाशय पाठक का दायित्व है कि वह आचार्यश्री की उन पंक्तियों में स्व-कल्पित अर्थ को पढ़ने का प्रयास करने के बजाय, पूर्वाग्रह-रहित होकर उस भावार्थ को ग्रहण करे जो कि न केवल सन्दर्भ-संगत हो अपितु जिनागम में उसी विषय का प्रतिपादन अन्यत्र भी जहाँ किया गया हो, वहाँ भी उस भावार्थ की भलीभांति संगति बैठती हो। (ग) अन्य आर्ष आचार्यों की कृतियों से अविरोध : ___ अपने पूर्ववर्ती आचार्य अकलंकदेव द्वारा तत्त्वार्थवार्तिक में दी गई ‘परिणाम'
की परिभाषा का भी सम्यक् भावानुसरण करते हैं : “द्रव्यस्य स्वजात्यपरित्यागेन विकारः... परिणामः। द्रव्यस्य चेतनस्येतरस्य वा द्रव्यार्थिकनयस्य अविवक्षातो न्यग्भूतां स्वां द्रव्यजातिमजहतः पर्यायार्थिकनयार्पणात् शधान्यं विभ्रता केनचित् पर्यायेण प्रादुर्भावः पूर्वपर्यायनिवृत्तिपूर्वको विकारः परिणाम इति प्रतिपत्तव्यः"२३ अर्थात् द्रव्य का अपनी स्वद्रव्यत्व जाति को नहीं छोड़ते हुए जो परिवर्तन होता है, उसे परिणाम कहते हैं। द्रव्यत्व जाति यद्यपि द्रव्य से भिन्न नहीं है, फिर भी द्रव्यार्थिकनय की अविवक्षा और पर्यायार्थिकनय की प्रधानता में उसका पृथक व्यवहार हो जाता है। तात्पर्य यह है कि अपनी मौलिक जाति को न छोड़ते हुए, पूर्वपर्याय की निवृत्तिपूर्वक, जो उत्तरपर्याय का उत्पन्न होना है, वही परिणाम है।