SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015 27. सर्वार्थसिद्धि, 7/9, 29. सावयधम्मदोहा, 48 28. वसुनन्दिश्रावकाचरार 101-111, 30. तत्त्वार्थसूत्र, 7/27 - एम.कॉ., एम.आई.टी., पी.एच.डी., प्रधानाचार्य- जैन इंटर कालेज, खेकड़ा (बागपत) उ0प्र0 प्रेरक बोधकथा जीवन का तीसरा आयाम - वीतरागता | - जीवन का प्रथम आयाम है - 'राग', जो मोह का अनुवर्ती होता है। - जीवन का दूसरा आयाम है - 'द्वेष', जो राग का प्रतिपक्षी है। |- जीवन का तीसरा आयाम है - 'वीतराग'- राग से परे, फिर द्वेष का कारण ही मिट जाता है। - वीतराग- समता के सागर में अनासक्ति के मोती है। | - हमें जिसके प्रति राग होता है, उसे अपने पास रखना चाहते हैं, और जिसके प्रति द्वेष है, उसे दूर करना चाहते हैं। वीतरागी में न सम्मोहन होता है और न ही वितृष्णा। ऋषि याज्ञवलक्य की दो पत्नी थीं। कात्यायनी और मैत्रेयी। जब वे वैराग्य भाव से आश्रम छोड़ने लगे, तो पूर्ण परिग्रह से रहित होने के लिए उन्होंने दोनों को बुलाकर- आश्रम की सभी वस्तुएँ आधी आधी बाँटने को कहा। कात्यायनी राजी हो गयी। लेकिन मैत्रेयी ने उपनिषद का एक सूत्र कहकर इसका रहस्य जानना चाहा- “येनाऽहं नामृता स्याम्, किमहं तेन कुर्याम्' अर्थात् जिसे पाकर मैं अमर न हो सकूँ उसे लेकर मैं क्या करूँगी ? यदि धन और वस्तुएँ आपके लिए व्यर्थ हो गयी, तो हमें किसलिए दे जा रहे हो? और यदि सम्पदा सार्थक है तो आप छोड़कर क्यों जा रहे हो? ऋषि याज्ञवलक्य धर्म संकट में पड गये। सच में- मैत्रेयी ने जीवन का तीसरा आयाम उद्घाटित कर दिया। (सौ बोध कथाओं से साभार- लेखक पं. निहालचंद जैन)
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy