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________________ 35 अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015 करके कर के रूप में प्राप्त करे। इसी प्रकार मन्त्री, पुरोहित आदि एवं अधीनस्थ सामन्तों से भी निवेदन करके कर के रूप में धन की याचना करे तथा अपने कोश को बढ़ावे।" आचार्य सोमदेव का कहना है कि जो राजा आय का विचार न करके आवश्यकता से अधिक व्यय करता है, वह असंख्य धन-सम्पत्ति का स्वामी होने पर भी भिक्षुक के समान आचरण करने वाला बन जाता है। ___ कराधान के सम्बन्ध में नीतिवाक्यामृत में कहा गया है कि राजा को राजकीय कर का निर्धारण अपने मन से न करके धर्मशास्त्रों में कहे अनुसार करना चाहिए। क्योंकि राजा यदि प्रजा से अन्यायपूर्ण ढंग से तृणशलाका भी लेता है तो पूजा को कष्ट होता है तथा उसकी पीडा से राजा का कोश नष्ट हो जाता है। आचार्य सोमदेव कहते हैं कि राजा को कर के वैकल्पिक उपायों से कोशवृद्धि करना चाहिए। वे वैकल्पिक उपाय निम्नलिखित हो सकते हैं। यथा - 1. जुआ में जीते गये धन को बरामद करके। 2. अपराधियों के जुर्माने से। 3. युद्ध में मारे गये लोगों का परिवार न होने पर। 4. तालाब, नदी, मार्ग में विस्मृत धन का स्वामी न मिलने पर। 5. चोरी का धन। 6. विप्लव आदि के कारण जनता द्वारा छोड़ा गया धन आदि। ___ महाभारत के शान्ति पर्व में कहा गया है कि राजा को पूजा से माली की भांति कर ग्रहण करना चाहिए न कि कोयला फूंकने वालों के समान।५ कोयला बनाने वाले तो सम्पूर्ण वृक्ष को ही जड़ सहित काट लेता है, जबकि माली आवश्यकतानुसार फूलों को ही तोड़ता है। अतः सोच विचार कर ही कर लगाना चाहिए। ऐसा न हो कि व्यापारियों को अपने व्यापार में लाभ भी प्राप्त न हो और कर भी अधिक देना पड़े। इससे तो अराजकता फैल जायेगी।६ मनुस्मृतिकार ने कर का विधान इस प्रकार किया है1. सोना एवं पशुविक्रय से प्राप्त लाभ का पचासवाँ हिस्सा। 2. कृषि आय पर बारहवाँ, आठवाँ या छठा हिस्सा। 3. शेष सभी वस्तुओं की बिक्री पर आय का छठा हिस्सा।।”
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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