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अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015 समय शुभ्र गृह थे, वे ही सूर्यास्त पर श्मसान हो गये। अतएव परोपकार करना मत छोड़ो, संसार क्षणिक है।
हाँ, प्रकृति बचती है अतः प्रकृति का संरक्षण करें। इस प्रकृति की प्रकृति भी बचायें और मानव प्रकृति को भी।
महाकवि पुष्पदन्त ने उत्तरकुरुभूमि की चर्चा करते हुए आदिपुराण सन्धि-26, पद्य-2 और 3 में वहाँ की जमीन, वहाँ के जल और वहाँ के कल्पवृक्ष का वर्णन किया है। वहाँ सोने ही जमीन है, पानी ऐसा मीठा कि जैसे रसायन हो। जहाँ सूर्य कल्पवृक्षों के द्वारा सत्ताईस योजन तक आच्छादित है।
जहाँ सुख उत्पन्न करने वाले दस वृक्ष हैं जो जन-मन का हरण करते हैं और चिन्तित फल देते हैं। मद्यांग वृक्ष, हर्षयुक्त पेय और मद्य, वादित्रांग, तुरंग और सूर्य, भूषणांग हार, केयूर और डोर, वस्त्रांग वस्त्र, गृहांग घर, जो मानो शरद मेघ हों। भाजनांग वृक्ष, अंगों को दीप्ति देने वाले तरह-तरह के बर्तन देते हैं और जो भोजनांग वृक्ष हैं, वे विविध भोज्य पदार्थ तथा रसयुक्त सैकड़ों प्रकार के भोजन देते हैं। माल्यांग नाम के वृक्ष देते है उन पुष्पों को जिनसे मनुष्य का सम्मान बढ़ता है,पुन्नाग, नाग, श्रेष्ठ पारिजात, भ्रमरों से सहित नवमालाएँ निर्दोष दीपांग वृक्ष तिमिरभाव को नष्ट करने वाले दीप देते हैं।22
आज भले ही कल्पवृक्ष हमारे बीच न हों किन्तु वनस्पति जगत् अभी पूरी तरह नष्ट नहीं हुआ है, जो बचा है उसे बचा सकते हैं क्योंकि हमारा भोजन, हमारी भूषा (वस्त्र), हमारे भेषज (औषधि) वनस्पति जगत् पर ही निर्भर है।
संदेश रासक अद्दहमाण (अब्दुल रहमान) की रचना है जिसमें 223 छन्द (पद) है। इसमें ईश्वर द्वारा बुधजनों के कल्याण की कामना की गयी है और कहा है कि वह ईश्वर बुधजनों का कल्याण करे; जिसने समुद्र, पृथ्वी, पर्वत, वृक्ष तथा आकाश रूपी आँगन में तारों की रचना की है। वे लिखते हैं
रयणायर धर गिरितरुवराइँ गयणंगणमि रिक्खाईं।