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________________ अनेकान्त 67/1, जनवरी-मार्च 2014 जिन प्रतिमाओं के साथ-साथ शासन देवी-देवताओं एवं यक्ष-यक्षों की मूर्तियाँ वाहन एवं आयुध के साथ निर्मित की जाती थी। सम्पूर्ण प्रतिमाएँ दो प्रकार की उल्लिखित हैं- चल एवं अचल। पहाड़ आदि में उकेरकर या दीवार में लेप करके स्थिर प्रतिमा का निर्माण किया जाता था जिनका स्थान परिवर्तन नहीं किया जा सकता। चल मूर्तियों का स्थान परिवर्तन हो सकता जिन-प्रतिमाओं का अंकन चैत्यवृक्ष, तोरणद्वार, मानस्तम्भ, आयागपट्ट और मुद्राओं पर भी दृष्टिगोचर होता है। जिन मंदिरों के द्वार पर मानस्तम्भ का निर्माण होता है। उदाहरणार्थ तीर्थकर के समवशवरण के चार द्वारों पर निर्मित होते हैं। इन पर जिन मूर्तियों का अंकन दृष्टव्य है। चैत्यवृक्ष के निम्न भाग में जिन प्रतिमाएँ अंकित होती हैं। इस श्लोक में यह स्पष्ट रूप से उल्लिखित है - ततोवीश्यंतरेष्वासीद्वनं कल्पमहीरूहां। नानारत्न प्रभोत्सर्पद्धतध्वांत मनोहरं।। चतुश्चैत्यद्रमास्तन्त्रा शोकाढयाः स्युः प्रभास्वराः। अधोभागे जिनाच्यंढियाः सपीठाश्छत्रशोभिताः।।३१ अर्थात् – “इस बीथी के बाद दूसरी बीथी में कल्पवृक्षों का एक विशाल वन था जो कि फैली हुई रत्नों की प्रभा से समस्त अंधकार का नाश करने वाला और महामनोहर था। उन कल्पवृक्षों के वन के अन्दर अशोक आदि चैत्यवृक्ष थे जो कि अपनी अद्भुत कान्ति से अत्यन्त देदीप्यमान थे। उनके नीचे के भाग में तीर्थकर की प्रतिमाएँ थीं। वे वृक्षमय और छत्रों से युक्त होने के कारण अत्यन्त शोभायमान थे। जिन-मूर्तियों का अंकन चैत्यवृक्षों के साथ-साथ स्तूपों पर भी दृष्टिगोचर होती है। श्री मल्लिनाथ तीर्थकर के समवशरण के स्तूपों का वर्णन इस प्रकार मिलता है - "वीथीनामध्यभागे तु नव स्तूपाः समुद्ययुः, पद्यरागमयाः सिद्ध जिनबिम्बाद्यलकृताः। स्तूपानामंतरेष्वेषां रत्नतोरणमालिकाः, बभुरिन्द्र धनुर्मय्यः इवोद्योतितखांगणाः।।३२
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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