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________________ 33 अनेकान्त 67, जनवरी-मार्च 2014 को पर्यायवाची के रूप में लिया जाता है, पर गंभीरता से यदि इन दोनों शब्दों की संरचना और इनकी अवधारणात्मक प्रक्रिया पर विचार किया जाए, तो यह बात स्पष्टतः सामने आती है कि दोनों शब्दों के मूल संरचक तत्त्व भिन्न-भिन्न हैं, इसलिए ये दोनों पारिभाषिक भिन्न-भिन्न अवधारणों या स्थितियों को अपने में समेटे हैं। 'सल्लेखना' सत् और लेखना के संयोग से बना है, जबकि 'समाधिमरण' समाधि और मरण शब्दों के समसन से। इससे स्पष्ट है कि उपर्युक्त दोनों शब्द भिन्न प्रकृतिमूल वाले हैं और जब भिन्न प्रकृतिमूल वाले हैं, तो मूलतः या पूर्णतः समानार्थी नहीं हो सकते, जैसाकि समझा जा रहा है या समझा जाता है; हाँ यह जरूर हो सकता है कि स्थितिगत या अर्थगत कुछ साम्य के कारण स्रोतप्रक्रिया व स्रोतकाल भिन्न होने के बावजूद कालांतर में दोनों समानार्थी या पर्यायवाची समझे जाने लगे हों। दोनों शब्दों की ध्वन्यात्मक प्रतिध्वनि से भी ऐसा लगता है कि 'सल्लेखना' प्राकृत मूल से है, जबकि 'समाधिमरण' संस्कृत मूल से। हाँ यह जरूर है कि 'सल्लेखना' के प्राकृत रूप ‘सल्लेहण' का प्रयोग 'समाधिमरण' के प्राकृत प्रयोग की तुलना में भगवती आराधना' में अधिक बार हुआ है। अब जब ये दोनों शब्द भिन्न संरचकों व भिन्न संरचना-प्रक्रिया वाले हैं, तो जरूरी यह है कि इन दोनों शब्दों की अर्थप्रकृति पर भी विचार किया जाए। मूल संरचकों के अर्थ को लेकर जब इन दोनों शब्दों की अर्थप्रकृति पर भी विचार किया जाता है, तो दो भिन्न स्थितियाँ या भिन्न बातें उभर कर आती हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि एक प्रमुख रूप से जीवन के अंतिम काल में होने वाली स्थिति का वाचक है, जबकि उसमें भी प्रक्रिया का कुछ अंश समाहित है या उसकी भी अपनी कुछ प्रक्रिया है; जबकि दूसरा पूरी तरह जीवन के लगभग अंतिम काल से पहले जीव के द्वारा करणीय क्रिया की प्रक्रिया को लक्ष्य कर गढ़ा गया है, इसलिए प्रमुख रूप से प्रक्रियामूलक है; इस प्रकार 'समाधिमरण' पहले प्रकार का शब्द है और 'सल्लेखना' दूसरे प्रकार का। इसलिए आलेख-प्रस्तोता का यह स्पष्ट मत है कि ये दोनों शब्द पूरी तरह समानार्थी या पर्यायवाची नहीं हैं व नहीं हो सकते, -जैसाकि अधिकांश लोग मानते हैं।
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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