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________________ 32 अनेकान्त 67/1, • जनवरी-मार्च 2014 सल्लेखना, समाधिमरण व भग. आराधना के तत्संबन्धित अन्य पारिभाषिक और आत्मघात डॉ. वृषभ प्रसाद जैन वस्तुतः ‘भगवती आराधना' का केन्द्रीय विषय 'सल्लेखना', 'समाधिमरण' या 'मरण- समाधि' है। आचार्य शिवार्य की मान्यता है मरते समय की आराधना ही वास्तविक आराधना है और वह ठीक हो जाए, - इसी के लिए जीवन-भर आराधना की जाती है । उस समय यदि आराधना ठीक से न हो पायी या भाव न संभल पाए या सहज न रह पाए, तो जीवन-भर की आराधना और साधना व्यर्थ हो जाती है और उस समय की सम्यक् आराधना से जीवन-भर की आराधना सफल हो जाती है, इसलिए जो मरते समय सम्यक् आराधक होता है, वास्तव में उसी की सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र व सम्यक् तप रूप साधना को ही 'भगवती आराधना' में सम्यक् आराधना कहा गया है। इस मरते समय की आराधना के लिए पूर्व में जीवन में अभ्यास करना योग्य है, जो उसका पूर्वाभ्यासी होता है, उसी की मरते समय की आराधना सुखपूर्वक होती है। यदि कोई पूर्व जीवन में अभ्यास नहीं करता है और फिर भी मरते समय आराधक हो जाता है, तो उसे सर्वत्र प्रमाण रूप नहीं माना जा सकता, परन्तु यह भी तथ्य है कि बहुत समय तक दर्शन, ज्ञान और चारित्र का निरतिचार पालन करने के बाद भी यदि मरते समय की आराधना बिगड़ जाए, तो उसका फल अनंत संसार होता है; परन्तु इसके ठीक विपरीत अनादि मिध्यादृष्टि भी मरते समय चारित्र की आराधना करके क्षण मात्र में मुक्त हो जाते हैं, इसलिए मरते समय की आराधना ही सारभूत है और इस आराधना का वर्णन ही विभिन्न पारिभाषिकों का उल्लेख करते हुए मुख्य रूप से 'भगवती आराधना' में किया गया है। सामान्यतः 'सल्लेखना' और 'समाधिमरण' इन दोनों पारिभाषिकों
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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