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________________ अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 प्रवृत्ति नहीं करते हैं। अर्थात् नाम आदि जाने बिना मनुष्यों की प्रवृत्ति प्राभृत के पाठन में नहीं होती है, अतः उनकी प्रवृत्ति कराने के लिए उपक्रम कहा जाता १३. व्याख्या विधि४ - शब्दों द्वारा सामान्य या विशेष रूप से जितना भी व्याख्यान किया जाता है वह सब भाषा के अन्तर्गत आता है। भाषा ही अभिव्यक्ति का माध्यम है। व्यक्ति की वाणी द्वारा सामान्य सीधी-साधी अभिव्यक्ति ही भाषा है। विभाषा अभिव्यक्ति या व्याख्या की ऊपर की कड़ी है। इसमें पर्यायवाची शब्दों द्वारा मूल का विशेष व्याख्यान किया जाता है। विभाषा के सम्बन्ध में धवलाकार लिखते हैं - 'विविहा भासा विहासा, परूपणा निरूपणा वक्खाणमिदि एयो ।' अर्थात विविध प्रकार के भाषण अथवा कथन करने को विभाषा कहते हैं। विभाषा, प्ररूपणा, निरूपण और व्याख्यान ये सब एकार्थक नाम १४. शास्त्रार्थ विधि - शास्त्रार्थ विधि प्राचीन शिक्षा पद्धति की एक प्रमुख विधि है। इस विधि में पूर्व और उत्तरपक्ष की स्थानापूर्वक विषयों की जानकारी प्राप्त की जाती है। एक ही तथ्य की उपलब्धि विभिन्न प्रकार के तर्को, विकल्पों और बौद्धिक प्रयोगों द्वारा की जाती है। जैन वाड्.मय में शास्त्रार्थ के दो रूप उपलब्ध होते हैं - १. पत्र परीक्षा २. ग्रन्थ परीक्षा। शास्त्रार्थ का दूसरा नाम विजिगीषु कथा है। १५. कथा, रूपक, तुलना उदाहरण विधि- प्राचीन जैन वाड्.मय में भी वैदिक और बौद्ध साहित्य की तरह कथा रूपक, तुलना, उदाहरणादि से दर्शन, न्याय, नीति आदि की शिक्षा देने के अनेक दृष्टान्त मिलते हैं। गुरु को किस प्रकार अपने गुरुकुल में शिष्य को अच्छी तरह परीक्षण कर स्थान देना चाहिए और किसी प्रकार उसे उचित शिक्षा देनी चाहिए। इसके लिए विशेषावश्यकभाष्य और आवश्यक नियुक्ति की एक गाथा से स्पष्ट है गोणी चंदण कंथा चेडीसो सा वए वहिर गोहे। टंकण ववहारो पडिवक्खो आयरिय-सीसे।।६
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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