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________________ 72 मथुरा के पुरातत्त्व अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 में जैन प्रतीकों का अंकन - डॉ. संगीता सिंह धार्मिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से प्रारंभ से ही मथुरा नगरी का प्रमुख स्थान रहा है। श्रीकृष्ण की जन्मभूमि होने के कारण मथुरा को भारत की हृदयस्थली के रूप में स्वीकार किया गया है। भागवत, बौद्ध एवं जैनधर्म की गतिविधियों का मथुरा प्रमुख केन्द्र रहा है। मथुरा तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्र, जिसे 'ब्रज' कहा जाता है, प्राचीनकाल में 'शूरसेन' जनपद के नाम से प्रसिद्ध था। इसकी राजधानी मथुरा थी । 'मनुस्मृति' में शूरसेन जनपद 'ब्रह्मर्षि देश' के अंतर्गत बताया गया है। पुराणों में उल्लेख है कि शत्रुघ्न ने राजा लवण को मार करके मथुरा नामक पुरी को बसाया था। प्राचीन ग्रंथों में जैसे- ब्राह्मण, बौद्ध, जैन एवं युनानी साहित्य में इस जनपद का नाम शूरसेन अनेकशः मिलता है। प्राचीन ग्रंथों में मेथोरा, मुदरा, मत-औ- लो, मो-तु-लो तथा शौरीपुर नामों का उल्लेख मिलता है। इन उद्धरणों से ऐसा प्रतीत होता है कि शूरसेन जनपद की संज्ञा ई. सन् आरम्भ तक प्रचलित रही। तथा शक- कुषाण शासकों के प्रभुत्व के साथ ही इस जनपद की संज्ञा राजधानी के नाम पर 'मथुरा' हो गई। मथुरा का प्राचीन नाम 'मधुरा' एवं 'मधुपुरी" मिलता है। यादवप्रकाश के 'वैजयन्ती कोष में मथुरा के दो नाम 'मधुषिका' एवं 'मधूपहन' प्राप्त होता है । 'अभिधानचिन्तामणि" में 'मधूपहना' नाम प्राप्त होता है। एक जैन ग्रंथ में 'महुरा' नाम आया है। प्राचीन अभिलेखों में 'मथुरा' तथा 'मथुला' नाम आया है। इस क्षेत्र की मुख्य नदी यमुना है। इसके प्राचीन नाम 'कालिन्दी' 'सूर्यतनया' एवं 'भानुजा' आदि प्राप्त होते हैं।" प्राचीनकाल में यमुना नदी मथुरा के निकट से बहती थी, आज भी यही स्थिति है। प्लिनी १५ ने यमुना को 'जोमेनस' कहा है जो 'मेथोरा' एवं 'क्लासीवोरा' के मध्य बहती थी ।
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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