SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 हुआ करती है तथा महापुरूषों उपदेशकों एवं कथावाचकों के समान ही गृहस्थी के विभिन्न झंझट में रहने वाले लोगों को भी इनकी आवश्यकता पड़ती है। मानव जीवन का ऐसा कोई भी कोना नहीं बचा जिस पर अमर सूक्तियों के कण अमृत के समान शीतलता एवं प्रेरणा प्रदान करने की शक्ति न देखते हो और संसार की ऐसी कोई जटिल समस्या नहीं जिसको बात की बात में सुलझाने की सूझ इनसे न मिलती हो अनेक प्राचीन साहित्यकारों के सम्बन्ध में ऐसी अनेक किवदन्तियाँ प्रसिद्ध है कि उनकी किसी एक सूक्ति से ही बड़े-बड़े अनर्थ एवं दुर्घटनाएँ रूक गई है और निविड़ (घने) अंधकार में भी पथ का प्रदर्शन हुआ है। यही नहीं केवल एक सूक्ति को ही लाखों सुवर्ण मुद्राओं में क्रय करने की मनोहर किवदन्तियाँ भी पायी जाती है और उनके द्वारा क्रय करने वाले का सर्वविध कल्याण भी सुना जाता है। तात्पर्य यह है कि ये सूक्तियाँ अमूल्य रत्न है और इनकी आवश्यकता प्रत्येक सहृदय को सर्वदा पड़ा करती है। सूक्तियों में शिक्षा एवं सदुपदेश की जितनी अमोघ शक्ति रहती है उतनी ही आत्म मंथन एवं अनुभूतियों को झंकृत करने की भी इनमें क्षमता होती है। सदग्रन्थों में सैकड़ो पृष्ठ अथवा किसी सदुपदेशक के घंटे दो के मनोहर व्याख्यान भी उतना प्रभाव नहीं डालते जितना गम्भीर प्रभाव किसी एक सूक्ति का हमारे हृदय पर पड़ता है। __ इसका कारण यह है कि सूक्तियों का प्रभाव सीधे हृदय पर पड़ता - राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, जयपुर परिसर, जयपुर (राजस्थान)
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy