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________________ अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 कनिंघम, ग्राउस, फ्यूरर" आदि पुरातत्त्वविदों ने समय-समय पर उत्खनन कार्य करके मथुरा की पुरासंपदा को प्रकाशित किया। मथुरा के पुरातत्व में वैदिक, बौद्ध एवं जैन धर्म से संबन्धित असंख्य कलाकृतियाँ प्राप्त हुई हैं जिन्हें देश के अनेक संग्रहालयों में संरक्षित एवं प्रदर्शित किया गया है। मथुरा में प्राप्त पुरातात्त्विक अवशेषों में जैन प्रतीकों का प्रारंभ एवं विकास दृष्टिगोचर होता है। जैन प्रतिमाओं के अंकन के पूर्व प्रतीक पूजा क दृष्टव्य होता है। 73 प्राचीन भारतीय साहित्य में प्रतीक शब्द का प्रयोग प्रचुरता से मिलता है। इसका उल्लेख 'ऋग्वेद' में सर्वप्रथम मिलता है। 'शतपथ ब्राह्मण' में प्रतीक की परिभाषा 'मुखं प्रतीकम्' के रूप में दी गई है। प्रतीक पूजा का प्रारम्भिक स्वरूप बौद्धधर्म में भी मिलता है। बौद्धधर्म की हीनयान विचारधारा में बुद्ध की मानव-मूर्ति का निर्माण करना वर्जित था।२२ फलतः बौद्ध अनुयायियों ने भी तथागत के लिए कई प्रतीकों की सर्जना किया। बोधिवृक्ष तथागत की सम्बोधि का, धर्मचक्र उनके प्रथम उपदेश का, स्तूप उनके महापरिनिर्वाण का और त्रिरत्न बुद्ध, धर्म तथा संघ के संगठित स्वरूप का परिचायक बन गया। इनके अतिरिक्त पदचिन्ह, आसन तथा छत्र भी बुद्ध की उपस्थिति के प्रतीक स्वीकार कर लिए गए। जैन धर्मावलम्बियों ने भी तीर्थकर की मानव मूर्तियाँ निर्मित करने के पहले उनके प्रतीक स्वरूप का पूजन करना प्रारंभ कर दिया था। जैन धर्म के प्राचीनतम पुरातात्त्विक अवशेष मथुरा के कंकाली टीले से प्राप्त हुए हैं जहाँ एक प्राचीन तथा एक कुषाणकालीन स्तूप था। मूर्तियों के निर्माण के पूर्व वहाँ तीर्थकर की पूजा प्रस्तर के चौकोर शिलापट्टों पर की जाती थीं जिन्हें 'आयागपट्ट' कहा गया है।२४ ‘आयाग' या ‘आर्यक' शब्द से विद्वानों ने 'पूजनीय' अर्थ लिया है। इसीलिए ब्यूलर ने इन्हें 'टैबलेट्स' ऑव होमेज आर वर्शिप' कहा था । ५ रामायण में भी उल्लिखित 'आयाग' शब्द का अर्थ टीकाकार ने 'याजनीय देवता' अर्थात् पूजनीय देवता किया है। जिस प्रकार नागार्जुनकोण्डा से मिले बौद्ध आयक खम्भ (आर्यक खम्भ) मात्र पूजा के लिए थे, उनका कोई वास्तुगत उपयोग न था, उसी प्रकार मथुरा के जैन आयागपट्ट भी स्वतंत्र प्रस्तर फलक थे। इनका उपयोग मात्र अर्हत्-पूजा के लिए किया जाता था,
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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